त्रयोदश (13) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अश्वमेध पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: त्रयोदशअध्याय: श्लोक 15-22 का हिन्दी अनुवाद
यह विचार कर मुझे उस पर हँसी आती है और मैं खुशी के मारे नाचने लगता हूँ। एकमात्र मैं ही समस्त प्राणियों के लिये अवध्य एवं सदा रहने वाला हूँ। अत: महाराज! आप भी नाना प्रकार की दक्षिणा वाले यज्ञों द्वारा अपनी उस कामना को धर्म में लगा दीजिये। वहाँ आपकी वह कामना सफल होगी। विधिपूर्वक दक्षिणा देकर आप अश्वमेध का तथा पर्याप्त दक्षिणा वाले अन्याय समृद्धशाली यज्ञों का अनुष्ठान कीजिये। अपने मारे गये भाई-बंधुओं को बारंबार याद करके आपके मन में व्यथा नहीं होनी चाहिये। इस समरांगण में जिनका वध हुआ है, उन्हें आप फिर नहीं देख सकते। इसलिये आप पर्याप्त दक्षिणा वाले समृद्धशाली महायज्ञों का अनुष्ठान करके इस लोक में उत्तम कीर्ति और परलोक में श्रेष्ठ गति प्राप्त करेंगे।
इस प्रकार आश्वमेध के अन्तर्गत अश्वमेध पर्व में श्रीकृष्ण और धर्मराज युधिष्ठिर का संवादविषयक तेरहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
|