द्वयशीतितम (82) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: द्वयशीतितम अध्याय: श्लोक 17-30 का हिन्दी अनुवाद
अर्जुन की यह बात सुनकर मेघसन्धि को यह विश्वास हो गया कि अब इन्होंने मेरी जान छोड़ दी है। तब वह अर्जुन के पास गया और हाथ जोड़कर उनका समादर करते हुए कहने लगा। 'वीरवर! आपका कल्याण हो। मैं आपसे परास्त हो गया। अब मैं युद्ध करने का उत्साह नहीं रखता। अब आपको मुझसे जो-जो सेवा लेनी हो, वह बताइये और उसे पूर्ण की हुई ही समझिये।' तब अर्जुन ने उसे धैर्य देते हुए पुन: इस प्रकार कहा– 'राजन! तुम आगामी चैत्रमास की पूर्णिमा को हमारे महाराज के अश्वमेध यज्ञ में अवश्य आना।' उनसे ऐसा कहने परे सहदेव पुत्र ने 'बहुत अच्छा कहकर उनकी आाज्ञा शिरोधार्य की और उस घोड़े तथा युद्ध स्थल के श्रेष्ठ वीर अर्जुन का विधिपूर्वक पूजन किया। तदनन्तर वह घोड़ा पुन: अपनी इच्छा के अनुसार आगे चला। वह समुद्र के किनारे–किनारे होता हुआ वंग, पुण्ड्र और कौसल आदि देशों में गया। राजन! उन देशों में अर्जुन केवल गाण्डीव धनुष की सहायता से म्लेच्कछों की अनेक सेनाओं को परास्त किया।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिक पर्व के अन्तर्गत अनुगीता पर्व में मगधराज की पराजय विषयक बयासीवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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