अष्टषष्टितम (68) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: अष्टषष्टितम अध्याय: श्लोक 17-24 का हिन्दी अनुवाद
यह बालक भी अपने पिता के ही समान कृतघ्न और नृशंस है, जो पाण्डवों की राजलक्ष्मी को छोड़कर अकेला ही यमलोक चला गया। केशव! मैंने युद्ध के मुहाने पर यह प्रतिज्ञा की थी कि ‘मेरे वीर पतिदेव! यदि आप मारे गये तो मैं शीघ्र ही परलोक में आपसे आ मिलूँगी। परंतु श्रीकृष्ण! मैंने उस प्रतिज्ञा का पालन नहीं किया। मैं बड़ी कठोरहृदया हूँ। मुझे पतिदेव नहीं, ये प्राण ही प्यारे हैं। यदि इस समय मैं परलोक में जाऊँ तो वहाँ अर्जुनकुमार मुझसे क्या कहेंगे?’
इस प्रकार श्रीमहाभारतपर्व आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में वाक्यविषयक अड़सठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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