एकोनषष्टितम (59) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 15-21 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- इस प्रकार मानवेतर प्राणियों-देवताओं और गन्धर्वों द्वारा जब देवकीनन्दन श्रीकृष्ण की स्तुति और पूजा की जा रही थी, उस समय वह पर्वतराज रैवतक इन्द्र भवन के समान जान पड़ता था। तदनन्तर सबसे सम्मानित हो भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सुन्दर भवन में प्रवेश किया और सात्यकि भी अपने घर में गये। जैसे इन्द्र दानवों पर महान पराक्रम प्रकट करके आये हों, उसी प्रकार दुष्कर कर्म करके दीर्घकाल के प्रवास से प्रसन्नचित होकर लौटे हुए भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भवन में प्रवेश किया। जैसे देवता देवराज इन्द्र की अगवानी करते हैं, उसी प्रकार भोज, कृष्ण और अन्धकवंश के यादवों ने अपने निकट आते हुए महात्मा श्रीकृष्ण का आगे बढ़कर स्वागत किया। मेधावी श्रीकृष्ण ने उन सबका आदर करके उनका कुशल समाचार पूछा और प्रसन्नतापूर्वक अपने माता-पिता के चरणों में प्रणाम किया। उन दोनों ने उन महाबाहु श्रीकृष्ण को अपनी छाती से लगा लिया और मीठे वचनों द्वारा उन्हें सांत्वना दी। इसके बाद सभी वृष्णिवंशी उनको घेरकर आस पास बैठ गये। महातेजस्वी श्रीकृष्ण जब हाथ-पैर धोकर विश्राम कर चुके, तब पिता के पूछने पर उन्होंने उस महायुद्ध की सारी घटना कह सुनायी।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकापर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में श्रीकृष्ण का द्वारकाप्रवेशविषयक उनसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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