महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 6 श्लोक 16-20

षष्ठ (6) अध्याय: आश्रमवासिक पर्व (आश्रमवास पर्व)

Prev.png

महाभारत: आश्रमवासिक पर्व: षष्ठ अध्याय: श्लोक 16-20 का हिन्दी अनुवाद


कुन्तीकुमार युधिष्ठिर! जो समूची पृथ्वी पर विजय पाना चहता हो, वह तो कदापि उस (सामन्त) की हिंसा न करे। तुम अपने मन्त्रियों सहित सदा शत्रुगणों में फूट डालने की इच्छा रखना। अच्छे पुरुषों से मेलजोल बढ़ाये और दुष्टों को कैद करके उन्हें दण्ड दे। महाबली नरेश को दुर्बल शत्रु के पीछे सदा नहीं पड़े रहना चाहिये। राजसिंह! तुम्हें बेंत की-सी वृत्ति (नम्रता) का आश्रय लेकर रहना चाहिये। यदि किसी दुर्बल राजा पर बलवान राजा आक्रमण करे तो क्रमशः साम आदि उपायों द्वारा उस बलवान राजा को लौटाने का प्रयत्न करना चाहिये। यदि अपने में युद्ध की शक्ति न हो तो मन्त्रियों के साथ उस आक्रमणकारी राजा की शरण में जाये तथा कोश, पुरवासी मनुष्य, दण्ड शक्ति एवं अन्य जो प्रिय कार्य हों, उन सबको अर्पित करके उस प्रतिद्वन्द्वी को लौटाने की चेष्टा करे। यदि किसी भी उपाय से संधि न हो तो मुख्य साधन को लेकर विपक्षी पर युद्ध के लिये टूट पड़े। इस क्रम से शरीर चला जाये तो भी वीर पुरुष की मुक्ति ही होती है। केवल शरीर दे देना ही उसका मुख्य साधन है।"

इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिक पर्व के अन्तर्गत आश्रमवास पर्व में धृतराष्ट्र का उपदेशविषयक छठा अध्याय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः