एकोनचत्वारिंश (39) अध्याय: आश्रमवासिक पर्व (नारदागमन पर्व)
महाभारत: आश्रमवासिक पर्व: एकोनचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 18-27 का हिन्दी अनुवाद
राजन! तदनन्तर देवर्षि नारद जी धर्मात्मा राजा युधिष्ठिर को आश्वासन देकर अभीष्ट स्थान को चले गये। इस प्रकार जिनके पुत्र रणभूमि में मारे गये थे, उन राजा धृतराष्ट्र ने अपने जाति-भाई, सम्बन्धी, मित्र, बन्धु और स्वजनों के निमित्त सदा दान देते हुए (युद्ध समाप्त होने के बाद) पंद्रह वर्ष हस्तिनापुर नगर में व्यतीत किये थे और तीन वर्ष वन में तपस्या करते हुए बिताये थे। जिनके बन्धु-बान्धव नष्ट हो गये थे, वे राजा युधिष्ठिर मन में अधिक प्रसन्न न रहते हुए किसी प्रकार राज्य का भार सँभालने लगे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिक पर्व के अन्तर्गत नारदागमन पर्व में श्राद्धदान विषयक उनतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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