नवनवतितम (99) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: नवनवतितम अध्याय: श्लोक 22-41 का हिन्दी अनुवाद
कुछ समय बाद वरुणनन्दन वसिष्ठ जी फल-मूल लेकर आश्रम पर आये; परंतु उस सुन्दर कानन में उन्हें बछड़े सहित अपनी गाय नहीं दिखायी दी। तब तपोधन वसिष्ठ जी उस वन में गाय की खोज करने लगे; परंतु खो जाने पर भी वे उदार बुद्धि महर्षि उस गाय को न पा सके। तब उन्होंने दिव्य दृष्टि से देखा और यह जान गये कि वसुओं ने उसका अपहरण किया है। फिर तो वे क्रोध के वशीभूत हो गये और तत्काल वसुओं को शाप दे दिया- ‘वसुओं ने सुन्दर पूंछ वाली मेरी कामधेनु गाय का अपहरण किया है, इसलिये वे सब-के-सब मनुष्य-योनि में जन्म लेंगे, इसमें संशय नहीं है’। भरतर्षभ! इस प्रकार मुनिवर भगवान् वसिष्ठ ने क्रोध के आवेश में आकर उन वसुओं को शाप दिया। उन्हें शाप देकर उन महाभाग महर्षि ने फिर तपस्या में ही मन लगाया। राजन्! तपस्या के धनी महर्षि वसिष्ठ का प्रभाव बहुत बड़ा है। इसीलिये उन्होंने क्रोध में भरकर देवता होने पर भी उन आठों वसुओं को शाप दे दिया। तदनन्तर हमें शाप मिला है, यह जानकर वे वसु पुन: महामना वसिष्ठ के आश्रम पर आये और उन महर्षि को प्रसन्न करने की चेष्टा करने लगे। नृपश्रेष्ठ! महर्षि आपव समस्त धर्मों के ज्ञान में निपुण थे। महाराज! उनको प्रसन्न करने की पूरी चेष्टा करने पर भी वे वसु उन मुनिश्रेष्ठ से उनका कृपा प्रसाद न पा सके। उस समय धर्मात्मा वसिष्ठ ने उनसे कहा- ‘मैंने धर आदि तुम सभी वसुओं को शाप दे दिया है; परंतु तुम लोग तो प्रति वर्ष एक-एक करके सब-के-सब शाप से मुक्त हो जाओगे। किंतु यह द्यो, जिसके कारण तुम सबको शाप मिला है, मनुष्यलोक में अपने कर्मानुसार दीर्घकाल तक निवास करेगा। मैंने क्रोध में आकर तुम लोगों से जो कुछ कहा है, उसे असत्य करना नहीं चाहता। ये महामना जो मनुष्यलोक में संतान की उत्पत्ति नहीं करेंगे। और धर्मात्मा तथा सब शास्त्रों में निपुण विद्वान् होंगे; पिता के प्रिय एवं हित में तत्पर रहकर स्त्री-सम्बन्धी भोगों का परित्याग कर देंगे।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज