सप्तम (7) अध्याय: आदि पर्व (पौलोम पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: सप्तम अध्याय: श्लोक 17-29 का हिन्दी अनुवाद
अतः लोकेश्वर! तुम ऐसा करो जिससे अग्निहोत्र आदि क्रियाओं का लोप न हो। तुम सबके स्वामी होकर भी इस प्रकार मूढ़ (मोहग्रस्त) कैसे हो गये, तुम संसार में सदा पवित्र हो, समस्त प्राणियों की गति भी तुम्हीं हो। तुम सारे शरीर से सर्वभक्षी नहीं होओगे। अग्निदेव! तुम्हारे अपान देश में जो ज्वालाएँ होंगी, वे ही सब कुछ भक्षण करेंगी। इसके सिवा जो तुम्हारी क्रव्याद मूर्ति है (कच्चा मांस या मुर्दा जलाने वाली जो चिता की आग है) वही सब कुछ भक्षण करेगी। जैसे सूर्य की किरणों से स्पर्श होने पर सब वस्तुएँ शुद्ध मानी जाती हैं, उसी प्रकार तुम्हारी ज्वालाओं से दग्ध होने पर सब कुछ शुद्ध हो जायेगा। अग्निदेव! तुम अपने प्रभाव से ही प्रकट हुए उत्कृष्ट तेज हो; विभो! अपने तेज से ही महर्षि के उस शाप को सत्य कर दिखाओ और अपने मुख में आहुति के रूप में पड़े हुए देवताओं के तथा अपने भाग को भी ग्रहण करो’। उग्रश्रवा जी कहते हैं- यह सुनकर अग्निदेव ने पितामह ब्रह्मा जी से कहा- ‘एवमस्तु (ऐसा ही हो)।’ यों कहकर वे भगवान ब्रह्मा जी के आदेश का पालन करने के लिये चल दिये। इसके बाद देवर्षिगण अत्यन्त प्रसन्न हो जैसे आये थे वैसे ही चले गये। फिर ऋषि-महर्षि भी अग्निहोत्र आदि सम्पूर्ण कर्मों का पूर्ववत पालन करने लगे। देवता लोग स्वर्गलोक में आनन्दित हो गये और इस लोक के समस्त प्राणी भी बड़े प्रसन्न हुए। साथ ही शापजनित पाप कट जाने से अग्निदेव को भी बड़ी प्रसन्नता हुई। इस प्रकार पूर्वकाल में भगवान अग्निदेव को महर्षि भृगु से शाप प्राप्त हुआ था। यही अग्नि शाप सम्बन्धी प्राचीन इतिहास है। पुलोमा राक्षस के विनाश और च्यवनमुनि के जन्म का वृत्तान्त भी यही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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