षट्सप्ततितम (76) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: षट्सप्ततितम अध्याय: श्लोक 21-37 का हिन्दी अनुवाद
जनमेजय! जब देवयानी ने देखा, गौऐं तो वन से लौट आयीं पर उनके साथ कच नहीं है, तब उसने उस समय अपने पिता से इस प्रकार कहा। देवयानी बोली- प्रभो! आपने अग्निहोत्र कर लिया और सूर्यदेव भी अस्ताचल को चले गये। गौऐं भी आज बिना रक्षक के ही लौट आयी हैं। तात! तो भी कच नहीं दिखाई देते हैं। पिताजी! अवश्य की कच या तो मारे गये हैं या मर गये हैं। मैं आपसे सच कहती हूं, उनके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी। शुक्राचार्य ने कहा- (बेटी! चिन्ता न करो।) मैं अभी ‘आओ’ इस प्रकार बुलाकर मरे हुए कच को जीवित किये देता हूँ। ऐसा कहकर उन्होंने संजीविनी विद्या का प्रयोग किया और कच को पुकारा। फिर तो गुरु के पुकारने पर कच विद्या के प्रभाव से हृष्ट-पुष्ट हो कुत्तों के शरीर फाड़-फाड़कर निकल आये और वहाँ प्रकट हो गये। उन्हें देखते ही देवयानी ने पूछा- ‘आज आपने लौटने में बिलम्ब क्यों किया?’ इस प्रकार पूछने पर कच ने शुक्राचार्य की कन्या से कहा- ‘भामिनि! मैं समिधा, कुश आदि और काष्ठ का भार लेकर आ रहा था। रास्ते में थकावट और भार से पीड़ित हो एक वट वृक्ष के नीचे ठहर गया। साथ ही सारी गौऐं भी उसी वृक्ष की छाया में आकर विश्राम करने लगीं। वहाँ मुझे देखकर असुरों ने पूछा- ‘तुम कौन हो?’ मैंने कहा- मेरा नाम कच है, मैं बृहस्पति का पुत्र हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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