महाभारत आदि पर्व अध्याय 75 श्लोक 20-40

पंचसप्ततितम (75) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: पंचसप्ततितम अध्‍याय: श्लोक 20-40 का हिन्दी अनुवाद


महायशस्‍वी पुरूरवा मनुष्‍य होकर भी मानवेतर प्राणियों से घिरे रहते थे। वे अपने बल-पराक्रम से उन्‍मत्त हो ब्राह्मणों के साथ विवाद करने लगे। बेचारे ब्राह्मण चीखते-चिल्लाते रहते थे तो भी वे उनका सारा धन-रत्न छीन लेते थे। जनमेजय! ब्रह्मलोक से सनत्‍कुमार जी ने आकर उन्‍हें बहुत समझाया और ब्राह्मणों पर अत्‍याचार न करने का उपदेश दिया, किंतु वे उनकी शिक्षा ग्रहण न कर सके। तब क्रोध में भरे हुए महर्षियों ने तत्‍काल उन्‍हें शाप दे दिया, जिससे वे नष्ट हो गये। राजा पुरूरवा लोभ से अभिभूत थे और बल के घमंड में आकर अपनी विवेक शक्ति खो बैठे थे। वे शोभाशाली नरेश ही गन्‍धर्व लोक में स्थित और विधिपूर्वक स्‍थापित त्रिवि‍ध अग्नियों को उर्वशी के साथ इस धरातल पर लाये थे। इलानन्‍दन पुरूरवा के छ: पुत्र उत्‍पन्न हुए, जिनके नाम इस प्रकार हैं- आयु, धीमान, अमावसु, दृढ़ायु, बनायु और शतायु। ये सभी उर्वशी के पुत्र हैं। उनमें से आयु के स्‍वर्भानुकुमारी के गर्भ से उत्‍पन्न पांच पुत्र बताये जाते हैं। नहुष, वृद्धशर्मा, रजि, गय तथा अनेना। आयुर्नन्‍दन नहुष बड़े बुद्धिमान् और सत्‍य-पराक्रमी थे। पृथ्‍वीपते! उन्‍होंने अपने विशाल राज्‍य का धर्मपूर्वक शासन किया। पितरों, देवताओं, ऋषियों, ब्राह्मणों, गन्‍धर्वों, नागों, राक्षसों तथा ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्‍यों का भी पालन किया। राजा नहुष ने झुंड-के-झुंड डाकुओं और लुटेरों का वध करके ऋषियों को भी कर देने के लिये विवश किया।

अपने इन्‍द्रत्‍व काल में पराक्रमी नहुष ने महर्षियों को पशु की तरह वाहन बनाकर उनकी पीठ पर सवारी की थी। उन्‍होंने तेज, तप, ओज और पराक्रम द्वारा समस्‍त देवताओं को तिरस्‍कृत करके इन्‍द्र पद का उपयोग किया था। राजा नहुष ने छ: प्रियवादी पुत्रों को जन्‍म दिया, जिनके नाम इस प्रकार हैं- यति, ययाति, संयाति, आयाति, अयाति और ध्रुव।[1] इनमें यति योग का आश्रय लेकर ब्रह्मभूत मुनि हो गये थे। तब नहुष के दूसरे पुत्र सत्‍यपराक्रमी ययाति सम्राट हुए। उन्‍होंने इस पृथ्‍वी का पालन तथा बहुत-से यज्ञों का अनुष्ठान किया। महाराज ययाति किसी से परास्‍त होने वाले नहीं थे। वे सदा मन और इन्द्रियों को संयम में रखकर बड़े भक्ति-भाव से देवताओं तथा पितरों का पूजन करते और समस्‍त प्रजा पर अनुग्रह रखते थे। महाराज जनमेजय! राजा ययाति के देवयानी और शर्मिष्ठा के गर्भ से महान् धनुर्धर पुत्र उत्‍पन्न हुए। वे सभी समस्‍त सद्गुणों के भण्‍डार थे। यदु और तुर्वसु- ये दो देवयानी के पुत्र थे और द्रुह्यु, अनु तथा पुरु- ये तीन शर्मिष्ठा के गर्भ से उत्‍पन्न हुए थे। राजन्! वे सर्वदा धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करते थे। एक समय नहुषपुत्र ययाति को अत्‍यन्‍त भयानक वृद्धावस्‍था प्राप्त हुई, जो रुप और सौन्‍दर्य का नाश करने वाली है। जनमेजय! वृद्धावस्‍था से आक्रान्त होने पर राजा ययाति ने अपने समस्त पुत्रों यदु, पुरु, तुर्वसु, द्रुह्यु तथा अनु से कहा- ‘पुत्रों! मैं युवावस्‍था से सम्‍पन्न हो जवानी के द्वारा कामोपभोग करते हुए युवतियों के साथ विहार करना चाहता हूँ। तुम मेरी सहायता करो’। यह सुनकर देवयानी के ज्‍येष्ठ पुत्र यदु ने पुछा- 'भगवन्! हमारी जवानी लेकर उसके द्वारा आपको कौन-सा कार्य करना है’। तब ययाति ने उससे कहा- ‘तुम मेरा बुढ़ापा ले लो और मैं तुम्‍हारी जवानी से विषयोपभोग करूंगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कहीं-कहीं ध्रुव के स्थान पर 'कृति' नाम भी मिलता है।

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