चतु:सप्ततितम (74) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: चतु:सप्ततितम अध्याय: श्लोक 110-122 का हिन्दी अनुवाद
(वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन!) ऐसा कहकर देवता तथा तपस्वी ऋषि शकुन्तला को पतिव्रता बतलाते हुए उस पर फूलों की वर्षा करने लगे। पुरुवंशी राजा दुष्यन्त देवताओं की यह बात सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और पुरोहित तथा मन्त्रियों से इस प्रकार बोले- ‘आप लोग इस देवदूत का कथन भलीभाँति सुन लें। मैं भी अपने इस पुत्र को इसी रुप में जानता हूँ। यदि केवल शकुन्तला के कहने से मैं इसे ग्रहण कर लेता, तो सब लोग इस पर संदेह करते और यह बालक विशुद्ध नहीं माना जाता’। वैशम्पायनजी कहते हैं- भारत! इस प्रकार देवदूत के वचन से उस बालक की शुद्धता प्रमाणित करके राजा दुष्यन्त ने हर्ष और आनन्द में मग्न हो उस समय अपने उस पुत्र को ग्रहण किया। तदनन्तर महराज दुष्यन्त ने पिता को जो-जो कार्य करने चाहिये, वे सब उपनयन आदि संस्कार बड़े आनन्द और प्रेम के साथ अपने उस पुत्र के लिये (शास्त्र और कुल की मर्यादा के अनुसार) कराये। और उसका मस्तक सूंघकर अत्यन्त स्नेहपूर्वक उसे हृदय से लगा लिया। उस समय ब्राह्मणों ने उन्हें आशीर्वाद दिया और वन्दीजनों ने उनके गुण गाये। महाराज ने पुत्र स्पर्शजनित परमआनन्द को अनुभव किया। दुष्यन्त ने अपनी पत्नी शकुन्तला का भी धर्मपूर्वक आदर-सत्कार किया और उसे समझाते हुए कहा- ‘देवी! मैंने तुम्हारे साथ जो विवाह-सम्बन्ध स्थापित किया था, उसे साधारण जनता नहीं जानती थी। अत: तुम्हारी शुद्धि के लिये ही मैंने यह उपाय सोचा था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज