एकोनसप्ततितम (69) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: एकोनसप्ततितम अध्याय: श्लोक 19-31 का हिन्दी अनुवाद
असीम पराक्रम वाले राजा गदा घुमाने की कला में अत्यन्त प्रवीण थे। अतः वे तोमर, तलवार, गदा तथा मुसलों की मार से स्वेच्छापूर्वक विचरने वाले जंगली हाथियों का वध करते हुए वहाँ सब ओर विचरने लगे। अद्भुत पराक्रमी नरेश और उनके युद्ध-प्रेमी सैनिकों ने उस विशाल वन का कोना-कोना छान डाला। अतः सिंह और बाघ उस वन को छोड़कर भाग गये। पशुओं के कितने ही झुंड, जिनके यूथपति मारे गये थे, व्यग्र होकर भागे जा रहे थे और कितने ही यूथ इधर-उधर आर्तनाद करते थे। वे प्यास से पीड़ित अत्यन्त खिन्न हो दौड़ने के परिश्रम से क्लान्तचित्त होने के कारण मूर्च्छित होकर गिर पड़ते थे। भूख, प्यास और थकावट से चूर-चूर हो बहुत से पशु धरती पर गिर पड़े। वहाँ कितने ही व्याघ्र-स्वभाव के नृशंस जंगली मनुष्य भूखे होने के कारण कुछ मृगों को कच्चे ही चबा गये। कितने ही वन में विचरने वाले व्याघ वहाँ आग जलाकर मांस पकाने की अपनी रीति के अनुसार मांस को कूट-कूट कर रांधने और खाने लगे। उस वन में कितने ही बलवान् और मतवाले हाथी अस्त्र-शस्त्रों के आघात से क्षत-विक्षत होकर सूंड को समेटे हुए भय के मारे वेगपूर्वक भाग रहे थे। उस समय उनके घावों से बहुत-सा रक्त वह रहा था और वे मल-मूत्र करते जाते थे। बड़े-बड़े जंगली हाथियों ने भी वहाँ भागते समय बहुत से मनुष्यों को कुचल डाला, वहाँ बाणरूपी जल की धारा बरसाने वाले सैन्यरूपी बादलों ने उस वनरूपी व्योम को सब ओर से घेर लिया था। महाराज दुष्यन्त ने जहाँ के सिंहों को मार डाला था, वह हिंसक पशुओं से भरा हुआ वन बड़ी शोभा पा रहा था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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