द्विषष्टितम (62) अध्याय: आदि पर्व (अंशावतरण पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: द्विषष्टितम अध्याय: श्लोक 22-37 का हिन्दी अनुवाद
लोक में जिनके महान् कर्म विख्यात हैं, जो सम्पूर्ण विद्याओं के ज्ञान द्वारा उद्भासित होते थे और जिनके धन एवं तेज महान् थे, ऐसे महामना पाण्डवों तथा अन्य क्षत्रियों की उज्ज्वल कीर्ति को लोक में फैलाने वाले और पुण्यकर्म के इच्छुक श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने इस पुण्यमय महाभारत ग्रन्थ का निर्माण किया है। यह धन, यश, आयु, पुण्य तथा स्वर्ग की प्राप्ति कराने वाला है। जो मानव इस लोक में पुण्य के लिये पवित्र ब्राह्मणों को इस परमपुण्यमय ग्रन्थ का श्रवण कराता है, उसे शाश्वत धर्म की प्राप्ति होती है। जो सदा कौरवों के इस विख्यात वंश का कीर्तन करता है, वह पवित्र हो जाता है। इसके सिवा उसे विपुल वंश की प्राप्ति होती है और वह लोक में अत्यन्त पूजनीय होता है। जो ब्राह्मण नियमपूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वर्षा के चार महीने तक निरन्तर इस पुण्यप्रद महाभारत का पाठ करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। जो महाभारत का पाठ करता है, उसे सम्पूर्ण वेदों का पारंगत जानना चाहिये। इसमें देवताओं, राजर्षियों तथा पुण्यात्मा ब्रह्मर्षियों के जिन्होंने अपने सब पाप धो दिये हैं, चरित्र का वर्णन किया गया है। इसके सिवा इस ग्रन्थ में भगवान् श्रीकृष्ण की महिमा का कीर्तन किया जाता है। देवेश्वर भगवान् शिव और देवी पार्वती का इसमें वर्णन है तथा अनेक माताओं से उत्पन्न होने वाले कार्तिकेय जी के जन्म का प्रसंग भी इसमें कहा गया है। ब्राह्मणों तथा गौओं के माहात्म्य का निरुपण भी इस ग्रन्थ में किया गया है। इस प्रकार यह महाभारत सम्पूर्ण श्रुतियों का समूह है। धर्मात्मा पुरुषों को सदा इसका श्रवण करना चाहिये। जो विद्वान् पर्व के दिन ब्राह्मणों को इसका श्रवण कराता है, उसके सब पाप धुल जाते हैं और वह स्वर्गलोक को जीतकर सनातन ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है। (जो राजा इस महाभारत को सुनता है, वह सारी पृथ्वी के राज्य का उपभोग करता है। गर्भवती स्त्री का श्रवण करे तो वह पुत्र को जन्म देती है। कुमारी कन्या सुने तो उसका शीघ्र विवाह हो जाता है। व्यापारी वैश्य यदि महाभारत श्रवण करें तो उनकी व्यापार के लिये की हुई यात्रा सफल होती है। शूरवीर सैनिक इसे सुनने से युद्ध में विजय पाते हैं। जो आस्तिक और दोष दृष्टि से रहित हों, उन ब्राह्मणों को नित्य इसका श्रवण करना चाहिये। वेद-विद्या का अध्ययन एवं ब्रह्मचर्य व्रत पूर्ण करके जो स्नातक हो चुके हैं, उन विजयी क्षत्रियों को और क्षत्रियों के अधीन रहने वाले स्वधर्म पारायण वैश्यों को भी महाभारत श्रवण कराना चाहिये। भारत! सब धर्मों में यह महाभारत श्रवणरुप श्रेष्ठ धर्म पूर्वकाल से ही देखा गया है। राजन! विशेषत: ब्राह्मण के मुख से इसे सुनने का विधान है। जो बारम्बार अथवा प्रतिदिन इसका पाठ करता है, वह परमगति को प्राप्त होता है। प्रतिदिन चाहे एक श्लोक या आधे श्लोक अथवा श्लोक के एक चरण का ही पाठ कर ले, किंतु महाभारत के अध्ययन से शून्य कभी नहीं रहना चाहिये। इस महाभारत में महात्मा राजर्षियों के विभिन्न प्रकार के जन्म-वृत्तान्तों का वर्णन है। इसमें मन्त्र-पदों का प्रयोग है। अनेक दृष्टियों (मतों) के अनुसार धर्म के स्वरुप का विवेचन किया गया है। इस ग्रन्थ में विचित्र युद्धों का वर्णन तथा राजाओं के अभ्युदय की कथा है। तात! इस महाभारत में ऋषियों तथा गन्धर्वों एवं राक्षसों की कथाएँ हैं। इसमें विभिन्न प्रसंगों को लेकर विस्तारपूर्वक वाक्य रचना की गयी है। इसमें पुण्य तीर्थों, पवित्र देशों, वनों, पर्वतों, नदियों और समुद्र के भी माहात्म्य का प्रतिपादन किया गया है। पुण्य प्रदशों एवं नगरों का भी वर्णन किया गया है। श्रेष्ठ उपचार और अलौकिक पराक्रम का भी वर्णन है। इस महाभारत में महर्षि व्यास ने सत्कार-योग (स्वागत-सत्कार के विविध प्रकार) का निरुपण किया है तथा रथसेना, अश्व-सेना और गज सेना की व्यूह रचना तथा युद्ध कौशल का वर्णन किया है। इसमें अनेक शैली की वाक्ययोजना- कथोपकथन का समावेश हुआ है। सारांश यह है कि इस ग्रन्थ में सभी विषयों का वर्णन है।) जो श्राद्ध करते समय अन्त में ब्राह्मणों को महाभारत के श्लोक एक चतुर्थांश भी सुना देता है, उसका किया हुआ वह श्राद्ध अक्षय होकर पितरों को अवश्य प्राप्त हो जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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