अष्टपंचाशत्तम (58) अध्याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: अष्टपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 21-32 का हिन्दी अनुवाद
उग्रश्रवा जी कहते हैं- विप्रवर शौनक! उस समय वहाँ आये हुए प्रधान-प्रधान नागराजाओं के इस प्रकार कहने पर महात्मा आस्तीक को बड़ी प्रसन्नता हुई। तदनन्तर उन्होंने वहाँ से चले जाने का विचार किया। इस प्रकार सर्पसत्र से नागों का उद्धार करके द्विजश्रेष्ठ धर्मात्मा आस्तीक ने विवाह करके पुत्र-पौत्रादि उत्पन्न किये और समय आने पर (प्रारब्ध शेष होने से) मोक्ष प्राप्त कर लिया। इस प्रकार मैंने आपसे आस्तीक के उपख्यान का यथावत वर्णन किया है; जिसका पाठ कर लेने पर कहीं भी सर्पों से भय नहीं होता। ब्रह्मन! भृगुवंश-शिरोमणे! आपके पूर्वज प्रमति ने अपने पुत्र रुरु के पूछने पर जिस प्रकार आस्तीककोपाख्यान कहा था और जिसे मैंने भी सुना था, उसी प्रकार विद्वान् महात्मा आस्तीक के मंगलमय चरित्र का मैंने प्रारम्भ से ही वर्णन किया है। आस्तीक का यह धर्ममय उपाख्यान पुण्य की वृद्धि करने वाला है। काम-क्रोधादि शत्रुओं का दमन करने वाले ब्राह्मण! कथा-प्रसंग में डुण्डुभ की बात सुनकर आपने मुझसे जिसके विषय में पूछा था, वह सब उपाख्यान मैंने कह सुनाया। इसे सुनकर आपके मन का महान कौतुहल अब निवृत्त हो जाना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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