पंचाशत्तम (50) अध्याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 21-38 का हिन्दी अनुवाद
महाराज! इस प्रकार तक्षक ने तुम्हारे पिता राजा परीक्षित का तिरस्कार किया है। इन महर्षि उत्तंक को भी उसने बहुत तंग किया है। यह सब तुमने सुन लिया, अब तुम जैसा उचित समझो, करो। उग्रश्रवा जी कहते हैं- शौनक! उस समय शत्रुओं का दमन करने वाले राजा जनमेजय अपने सम्पूर्ण मन्त्रियों से इस प्रकार बोले। जनमेजय ने कहा- उस वृक्ष के डँसे जाने और फिर हरे होने की बात आप लोगों से किसने कही? उस समय तक्षक के काटने से जो वृक्ष राख का ढेर बन गया था, उसे काश्यप ने पुनः जिलाकर हरा-भरा कर दिया। यह सब लोगों के लिये बड़े आश्चर्य की बात है। यदि काश्यप के आ जाने से उनके मन्त्रों द्वारा तक्षक का विष नष्ट कर दिया जाता तो निश्चय ही मेरे पिताजी बच जाते। परंतु उस पापात्मा नीच सर्प ने अपने मन में यह सोचा होगा- ‘यदि मेर डँसे हुए राजा को ब्राह्मण जिला देंगे तो लोग कहेंगे कि तक्षक का विष भी नष्ट हो गया। इस प्रकार तक्षक लोक में उपहास का पात्र बन जायेगा।’ अवश्य ही ऐसा सोचकर उसने ब्राह्मण को धन के द्वारा संतुष्ट किया था। अच्छा, भविष्य में प्रयत्नपूर्वक कोई-न-कोई उपाय करके तक्षक को इसके लिये दण्ड दूँगा। परंतु एक बात मैं सुनना चाहता हूँ। नागराज तक्षक और काश्यप ब्राह्मण का वह संवाद तो निर्जन वन में हुआ होगा। यह सब वृत्तान्त किसने देखा और सुना था? आप लोगों तक यह बात कैसे आयी? यह सब सुनकर मैं सर्पों के नाश का विचार करूँगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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