महाभारत आदि पर्व अध्याय 40 श्लोक 21-33

चत्‍वारिंश (40) अध्‍याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: चत्‍वारिंश अध्‍याय: श्लोक 21-33 का हिन्दी अनुवाद


तब राजा ने कुपित हो धनुष की नोक से एक मरे हुए साँप को उठाकर उनके कंधे पर रख दिया, तो भी मुनि ने उनकी उपेक्षा कर दी। उन्होंने राजा से भला या बुरा कुछ भी नहीं कहा। उन्हें इस अवस्था में देख राजा परीक्षित ने क्रोध त्याग दिया और मन-ही-मन व्यथित हो पश्चात्ताप करते हुए वे अपनी राजधानी को चले गये। वे महर्षि ज्यों-के-त्यों बैठे रहे। राजाओं में श्रेष्ठ भूपाल परीक्षित अपने धर्म के पालन में तत्पर रहते थे, अतः उस समय उनके द्वारा तिरस्कृत होने पर भी क्षमाशील महामुनि ने उन्हें अपमानित नहीं किया। भरतवंश शिरोमणि नृपश्रेष्ठ परीक्षित उन धर्मपरायण मुनि को यथार्थ रूप में नहीं जानते थे; इसीलिये उन्होंने महर्षि का अपमान किया। मुनि के श्रृंगी नामक एक पुत्र था, जिसकी अभी तरुणावस्था थी। वह महान तपस्वी, दुःसह तेज से सम्पन्न और महान व्रतधारी था। उसमें क्रोध की मात्रा बहुत अधिक थी; अतः उसे प्रसन्न करना अत्यन्त कठिन था। वह समय-समय पर मन और इन्द्रियों को संयम में रखकर सम्पूर्ण प्राणियों के हित में तत्पर रहने वाले, उत्तम आसन पर विराजमान आचार्य देव की सेवा में उपस्थित हुआ करता था।

श्रृंगी उस दिन आचार्य की आज्ञा लेकर घर को लौट रहा था। रास्ते में उसका मित्र ऋषिकुमार कृश, जो धर्म के लिये कष्ट उठाने के कारण सदा ही कृश (दुर्बल) रहा करता था, खेलता मिला। उसने हँसते-हँसते श्रृंगी ऋषि को उसके पिता के सम्बन्ध में ऐसी बात बतायी, जिसे सुनते ही वह रोष में भर गया। द्विजश्रेष्ठ! मुनिकुमार श्रृंगी क्रोध के आवेश में विनाशकारी हो जाता था। कृश ने कहा- श्रृं‍गिन! तुम बड़े तपस्वी और तेजस्वी बनते हो, किंतु तुम्हारे पिता अपने कंधे पर मुर्दा सर्प ढो रहे हैं। अब कभी अपनी तपस्या पर गर्व न करना। हम जैसे सिद्ध, ब्रह्मवेत्ता तथा तपस्वी ऋषिपुत्र जब कभी बातें करते हों, उस समय तुम वहाँ कुछ न बोलना। कहाँ है तुम्हारा पौरुष का अभिमान, कहाँ गयीं तुम्हारी वे दर्पभरी बातें? जब तुम अपने पिता को मुर्दा ढोते चुपचाप देख रहे हो। मुनिजन शिरोमणे! तुम्हारे पिता के द्वारा कोई अनुचित कर्म नहीं बना था; इसलिये जैसे मेरे ही पिता का अपमान हुआ हो उस प्रकार तुम्हारे पिता के तिरस्कार से मैं अत्यन्त दुखी हो रहा हूँ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदि पर्व के अंतर्गत आस्तीक पर्व में परीक्षित-उपाख्यानविषयक चालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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