महाभारत आदि पर्व अध्याय 209 श्लोक 20-29

नवाधिकद्विशततम (209) अध्‍याय: आदि पर्व (विदुरागमन-राज्‍यलम्‍भ पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: नवाधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 20-29 का हिन्दी अनुवाद


कठिन-से-कठिन स्‍थान में छिपे हुए मुनि को भी वे मद बहाने वाले मतवाले हाथी का रुप धारण करके यमलोक पहुँचा देते थे। वे कभी सिंह होते, कभी बाघ बन जाते और कभी अदृश्‍य हो जाते थे। इस प्रकार वे क्रूर दैत्‍य विभिन्‍न उपायों द्वारा ऋषियों को ढूंढ-ढूंढ कर मारने लगे। उस समय पृथ्‍वी पर यज्ञ और स्‍वाध्‍याय बंद हो गये। राजर्षि और ब्राह्मण नष्‍ट हो गये और यात्रा, विवाह आदि उत्‍सवों तथा यज्ञों की सर्वथा समाप्ति हो गयी। सर्वत्र हाहाकार छा रहा था, भय का आर्तनाद सुनायी पड़ता था। बाजारों में खरीद-बिक्री का नाम नहीं था। देवकार्य बंद हो गये। पुण्‍य और विवाहादि कर्म छूट गये थे। कृषि और गोरक्षा का नाम नहीं था, नगर और आश्रम उजड़कर खण्‍डहर हो गये थे।

चारों ओर हड्डियां और कंकाल भरे पड़े थे। इस प्रकार पृथ्‍वी की ओर देखना भी भयानक प्रतीत होता था। श्राद्धकर्म लुप्‍त हो गया। वषट्कार और मंगल का कहीं नाम नहीं रह गया। सारा जगत् भयानक प्रतीत होता था। इसकी ओर देखना तक कठिन हो गया था। सुन्‍द और उपसुन्‍द का वह भयानक कर्म देखकर चन्‍द्रमा, सूर्य, ग्रह, तारे, नक्षत्र और देवता सभी अत्‍यन्‍त खिन्‍न हो उठे। इस प्रकार वे दोनों दैत्‍य अपने क्रूर कर्म द्वारा सम्‍पूर्ण दिशाओं को जीतकर शत्रुओं से रहित हो कुरुक्षेत्र में निवास करने लगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदि पर्व के अन्‍तर्गत विदुरागमन राज्‍यलम्‍भपर्व में सुन्‍दोपसुन्‍दोपाख्‍यान विषयक दौ सौ नौवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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