नवनवत्यधिकशततम (199) अध्याय: आदि पर्व (विदुरागमनराज्यलम्भपर्व)
महाभारत: आदि पर्व: नवनवत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 9-22 का हिन्दी अनुवाद
विदुर जी ने जब यह सुना कि पाण्डवों ने द्रौपदी को प्राप्त किया है और धृतराष्ट्र के पुत्र अपना अभिमान चूर्ण हो जाने से लज्जित होकर लौट आये हैं, तब वे मन-ही-मन बड़े प्रसन्न हुए। राजन्! तब वे धृतराष्ट्र के पास जाकर विस्मयसूचक वाणी में बोले- ‘महाराज! हमारा अहोभाग्य है, जो कौरव वंश की वृद्धि हो रही है। भारत! विचित्रवीर्यनन्दन राजा धृतराष्टर विदुर की यह बात सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हो सहसा बोल उठे- ‘अहोभाग्य, अहोभाग्य।’ उस अंधे नरेश ने अज्ञानवश यह समझ लिया कि ‘द्रुपद कन्या ने मेरे ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन का वरण किया है।’ इसलिये उन्होंने आज्ञा दी- ‘द्रौपदी के लिये बहुत-से आभूषण मंगाओ और मेरे पुत्र दुर्योधन तथा द्रौपदी को बड़ी धूमधाम से नगर में ले आओ।’ तब पीछे से विदूर ने उन्हें बताया कि- द्रौपदी ने पाण्डवों का वरण किया है। वे सभी वीर राजा द्रुपद के द्वारा पूजित होकर वहाँ कुशलतापूर्वक रह रहे हैं। उसी स्वंयवर में उनके बहुत-से अन्य सम्बन्धी भी, जो भारी सैनिक शक्ति से सम्पन्न हैं, पाण्डवों से प्रेमपूर्वक मिल हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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