पंचनवत्यधिकशततम (195) अध्याय: आदि पर्व (वैवाहिक पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: पंचनवत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-23 का हिन्दी अनुवाद
व्यास जी बोले- भद्रे! तुम झूठ से बच जाओगी। (पाण्डवों के लिये) यह सनातन धर्म है। (कुन्ती से यों कहकर वे द्रुपद से बोले) पांचालराज! (इस विवाह में एक रहस्य है, जिसे) मैं सबके सामने नहीं कहूंगा। तुम स्वयं एकान्त में चलकर मुझसे सुन लो। जिस प्रकार और जिस कारण से यह सनातन धर्म के अनुकूल कहा गया है और कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर ने जिस प्रकार इसकी धर्मानुकूलता का प्रतिपादन किया है, उस पर विचार करने से निस्संदेह यही सिद्ध होता है कि यह विवाह धर्मसम्मत है। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर शक्तिशाली द्वैपायन भगवान् व्यास जी अपने आसन से उठे और राजा द्रुपद का हाथ पकड़कर राजभवन के भीतर चले गये। पांचों पाण्डव, कुन्ती देवी तथा द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न –ये सब लोग वहाँ बैठे थे, वहीं उन दोनों (व्यास और द्रुपद) की प्रतीक्षा करने लगे। तदनन्तर व्यास जी ने उन महात्मा नरेश को वह कथा सुनायी, जिसके अनुसार वहाँ बहुत-से पुरुषों का एक ही पत्नी से विवाह करना धर्मसम्मत माना गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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