षट्पंचाशदधिकशततम (156) अध्याय: आदि पर्व (बकवध पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: षट्पंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 31-41 का हिन्दी अनुवाद
कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि पिता का अधिक स्नेह पुत्र पर होता है तथा कुछ दूसरे लोग पुत्री पर ही अधिक स्नेह बताते हैं, किंतु मेरे तो दोनों ही समान है। जिस पर पुण्यलोक, वंशपरम्परा और नित्य सुख-सब कुछ सदा निर्भर रहते हैं, उस निष्पाप बालिका का परित्याग मैं कैसे कर सकता हूँ। अपने को भी त्यागकर परलोक में जाने पर मैं सदा इस बात के लिये संतप्त होता रहूंगा कि मेरे द्वारा त्यागे हुए ये बच्चे अवश्य ही यहाँ जीवित नहीं रह सकेंगे। इनमें से किसी का त्याग विद्वानों ने निर्दयतापूर्वक तथा निन्दनीय बताया है और मेरे मर जाने पर ये सभी मेरे बिना मर जायंगे। अहो! मैं बड़ी कठिन विपत्ति में फंस गया हूँ। इससे पार होने की मुझमें शक्ति नहीं है। धिक्कार है इस जीवन को! हाय! मैं बन्धु-बान्धवों के साथ आज किस गति को प्राप्त होऊंगा। सबके साथ मर जाना ही अच्छा है। मेरा जीवित रहना कदापि उचित नहीं है। इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्तर्गत बकवध पर्व में ब्राह्मण की चिन्ता विषयक एक सौ छप्पनवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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