चतुष्पंचादशधिकशततम (154) अध्याय: आदि पर्व (हिडिम्बवध पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: चतुष्पंचादशधिकशततम अध्याय: श्लोक 20-39 का हिन्दी अनुवाद
अत: उन-उन स्थानों में भीमसेन को आनन्द प्रदान करती हुई विचरती रहती थी। कुछ काल के पश्चात् उस राक्षसी ने भीमसेन से एक महान् बलवान् पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसकी आंखें विकराल, मुख विशाल और कान शंख के समान थे। वे देखने में बड़ा भयंकर जान पड़ता था। उसकी आवाज बड़ी भयानक थी। सुन्दर लाल-लाल ओठ, तीखी दाढ़ें, महान् बल, बहुत बड़ा धनुष, महान् पराक्रम, अत्यन्त धैर्य और साहस, बड़ी-बड़ी भुजाएं, महान् वेग और विशाल शरीर-ये उसकी विशेषताएं थीं। वह महामायावी राक्षस अपने शत्रुओं का दमन करने वाला था। उसकी नाक बहुत बड़ी, छाती चौड़ी तथा पैरों की दोनों पिंडलियां टेढ़ी और ऊँची थी। यद्यपि उसका जन्म मनुष्य से हुआ था तथापि उसकी आकृति और शक्ति अमानुषिक थी। उसका वेग भंयकर और बल महान् था। वह दूसरे पिशाचों तथा राक्षसों से बहुत अधिक शक्तिशाली था। राजन्! अवस्था में बालक होने पर भी वह मनुष्यों में युवक-सा प्रतीत होता था। उस बलवान् वीर ने सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों में बड़ी निपुणता प्राप्त की थी। राक्षसियां जब गर्भ धारण करती हैं, तब तत्काल ही उसको जन्म दे देती हैं। वे इच्छानुसार रुप धारण करने वाली और नाना प्रकार के रुप बदलने वाली होती हैं। उस महान् धनुर्धर बालक ने पैदा होते ही पिता और माता के चरणों में प्रणाम किया। उसके सिर में बाल नहीं उगे थे। उस समय पिता और माता ने उसका इस प्रकार नामकरण किया। बालक की माता ने भीमसेन से कहा- ‘इसका घट (सिर) उत्कच[1] अर्थात् केशरहित है।’ उसके इस कथन से ही उसका नाम घटोत्कच हो गया। घटोत्कच का पाण्डवों के प्रति बड़ा अनुराग था और पाण्डवों को भी वह बहुत प्रिय था। वह सदा उनकी आज्ञा के अधीन रहता था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कोई-कोई उत्कच का अर्थ ‘ऊपर उठे हुए बालों वाला’ भी करते हैं।
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज