महाभारत आदि पर्व अध्याय 152 श्लोक 35-44

द्विपंचाशदधिकशततम (152) अध्‍याय: आदि पर्व (हिडिम्बवध पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: द्विपंचाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 35-44 का हिन्दी अनुवाद


तू अपने-आपको जो बड़ा बलवान् और पराक्रमी समझ रहा हैं, उसकी सचाई का पता तो तब लगेगा, जब आज मेरे साथ भिड़ेगा। तभी तू जान सकेगा कि मुझसे तुझमें कितना अधिक बल है। दुबुद्धे! मैं पहले इन सबकी हिंसा नहीं करुंगा। ये थोड़ी देर तक सुखपूर्वक सो लें। तू मुझे बड़ी कड़वी बातें सुना रहा हैं, अत: सबसे पहले तुझे ही अभी मारे देता हूँ। पहले तेरे अंगों का ताजा खून पीकर उसके बाद तेरे इन भाइयों का वध करुंगा। तदनन्‍तर अपना अप्रिय करने वाली इस हिडिम्बा को भी मार डालूंगा। वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन्! यों कहकर क्रोध में भरा हुआ वह नरभक्षी राक्षस अपनी एक बांह उपर उठाये शत्रुदमन भीमसेन पर टूट पड़ा। झटपते ही बड़े वेग से उसने भीमसेन पर हाथ चलाया। तब तो भयंकर पराक्रमी भीमसेन ने तुरंत ही उसके हाथ को हंसते हुए से पकड़ लिया। वह राक्षस उसके हाथ से छूटने के लिये छटपटाने और उछल-कूद मचाने लगा, परंतु भीमसेन उसे पकड़े हुए ही बलपूर्वक उस स्‍थान से आठ धनुष (बत्तीस हाथ) दूर घसीट ले गये- उसी प्रकार जैसे सिंह किसी छोटे मनुष्‍य को घसीटकर ले जाय। पाण्‍डुनन्‍दन भीम के द्वारा बलपूर्वक पीड़ित होने पर वह राक्षस क्रोध में भर गया और भीमसेन को भुजाओं से कसकर भयंकर गर्जना करने लगा। तब महाबली भीमसेन यह सोचकर पुन: उसे बलपूर्वक कुछ दूर खींच ले गये कि सुखपूर्वक सोये हुए भाइयों के कानों में शब्‍द न पहुँचे।

फिर तो दोनों एक-दूसरे से गुथ गये और बलपूर्वक अपनी-अपनी ओर खींचने लगे। हिडिम्ब और भीमसेन दोनों ने बड़ा भारी पराक्रम प्रकट किया। जैसे साठ वर्ष की अवस्‍था वाले दो मतवाले गजराज कुपित हो परस्‍पर युद्ध करते हों, उसी प्रकार वे दोनों एक-दूसरे से भिड़कर वृक्षों का तोड़ने और लताओं को खींच-खींचकर उजाड़ने लगे। वे दोनों वृक्ष उठाये बड़े वेग से एक दूसरे की ओर दौड़ते थे, अपनी जांघों को टक्कर से चारों ओर की लताओं को छिन्‍न-भिन्‍न किये देते थे तथा गर्जन-तर्जन के द्वारा सब ओर पशु-पक्षियों को आतंकित कर देते थे। बल से उन्‍मत हुए वे दोनों महाबली योद्धा एक-दूसरे को मार डालना चाहते थे। उस समय भीमसेन और हिडिम्‍बासुर में बड़ा भयंकर युद्ध चल रहा था। वे दोनों एक-दूसरे की भुजाओं को मरोड़ते और जांघों को घुटनों से दबाते हुए दोनों एक-दूसरे को अपनी ओर खींचते थे। तदनन्‍तर वे बड़े जोर से गर्जते हुए परस्‍पर इस प्रकार प्रहार करने लगे, मानो दो चट्टानें आपस में टकरा रही हों। तत्‍पश्‍चात् वे एक दूसरे से गुथ गये और दोनों दोनों को भुजाओं में कसकर इधर-उधर खींच ले जाने की चेष्‍टा करने लगे। उन दोनों की भारी गर्जना से वे नरश्रेष्‍ठ पाण्‍डव माता सहित जाग उठे और उन्‍होंने अपने सामने बड़ी हुई हिडिम्‍बा को देखा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्‍तर्गत हिडिम्‍बवध पर्व में हिडिम्‍ब-युद्ध विषयक एक सौ बावनवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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