एकपंचाशदधिकशततम (151) अध्याय: आदि पर्व (हिडिम्बवध पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: एकपंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-36 का हिन्दी अनुवाद
शत्रुदमन यदि आपने मुझे त्याग दिया तो मैं कदापि जीवित नहीं रह सकती। मैं आकाश में विरचने वाली हूँ। जहाँ इच्छा हो, वहाँ विचरण कर सकती हूँ। आप मेरे साथ भिन्न-भिन्न लोकों और प्रदेशों में विहार करके अनुपम प्रसन्नता प्राप्त कीजिये।' भीमसेन बोले - राक्षसी ये मेरे ज्येष्ठ भ्राता हैं, जो मेरे लिये परम सम्मानीय गुरु हैं, इन्होंने अभी तक विवाह नहीं किया हैं, ऐसी दशा मे तुझसे विवाह करके किसी प्रकार परिवेत्ता[2] नहीं बनना चाहता। कौन ऐसा मनुष्य होगा, जो इस जगत में सामर्थ्यशाली होते हुए भी, सूखपूर्वक सोये हुए इन बन्धुओं को, माता को तथा बड़े भ्राता को भी किसी प्रकार अरक्षित छोड़कर जा सके? मुझ-जैसा कौन पुरुष काम पीड़ित की भाँति इन सोये हुए भाइयों और माता को राक्षस का भोजन बनाकर (अन्यत्र) जा सकता है? राक्षसी ने कहा- आपको जो प्रिय लगे, मैं वही करुंगी। आप इन सब लोगों को जगा दिजिये। मैं इच्छानुसार उस मनुष्य भक्षी राक्षस से इन सबको छुड़ा लुंगी। भीमसेन ने कहा- राक्षसी मेरे भाई और माता इस वन-में सुखपूर्वक सो रहे हैं, तुम्हारे दुरात्मा भाई के भय से मैं इन्हें जगाऊँगा नहीं। भीरु सुलोचने मेरे पराक्रम को राक्षस, मनुष्य, गन्धर्व तथा यक्ष भी नहीं सह सकते हैं। अत:भद्रे तुम जाओ या रहो; अथवा तुम्हारी जैसी इच्छा हो, वही करो। तन्वंगि अथवा यदि तुम चाहो तो अपने नरमांसभक्षी भाई को भेज दो। इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्तगर्त हिडिम्बपर्व में भीम-हिडिम्बा-संवादविषयक एक सौ इक्यानवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ तपाये हुए सोने के समान वर्ण वाली स्त्री को 'श्यामा' कहा जाता है, जैसा कि इस वचन से सिद्ध है-
'तप्तकाञ्चनवर्णासा स्त्री श्यामेति कथ्यते।' - ↑ जो निर्दोष बड़े भाई के अविवाहित रहते हुए ही अपना विवाह कर लेता है, वह 'परिवेत्ता' कहलाता है। शास्त्रों में वह निंदनीय माना गया है।
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