एकोनचत्वारिंशदधिकशततम (139) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: एकोनचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 85-91 का हिन्दी अनुवाद
लोहे का बना हुआ छूरा शान पर चढ़ाकर तेज किया जाता और चमड़े संपुट में छिपाकर रखा जाता है तो वह समय आने पर (सिर आदि अंगों के समस्त) बालों को काट देता है। उसी प्रकार राजा अनुकूल अवसर की अपेक्षा रखकर अपने मनोभाव को छिपाये हुए अनुकूल साधनों का संग्रह करता रहे और छुरे की तरह तीक्ष्ण या निर्दय होकर शत्रुओं के प्राण ले ले- उनका मूलोच्छेद कर डाले। कुरुश्रेष्ठ! आप भी इस नीति का अनुसरण करके पाण्डवों तथा दूसरे लोगों के साथ यथोचित बर्ताव करते रहें। परंतु ऐसा कार्य करें जिससे स्वयं संकट के समुद्र में डूब न जायें। आप समस्त कल्याणकारी साधनों से सम्पन्न और सबसे श्रेष्ठ हैं, यही सबका निश्चय है; अत: नरेश्वर! आप पाण्डु के पुत्रों से अपनी रक्षा कीजिये। राजन्! आपके भतीजे बलवान् हैं; अत: ऐसी नीति काम में लाइये, जिससे आगे चलकर आपको पछताना न पड़े। वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! यों कहकर कणिक अपने घर को चले गये। इधर कुरुवंशी धृतराष्ट्र शोक से व्याकुल हो गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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