षटत्रिंशदधिकशततम (136) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: षटत्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 16-25 का हिन्दी अनुवाद
यह सुनकर समूचे रंगमण्डप में दुर्योधन को मिलने वाले साधुवाद के साथ ही (युद्ध की सम्भावना से) महान् हाहाकार मच गया। इतने में ही सूर्यदेव अस्ताचल को चले गये। तब दुर्योधन कर्ण के हाथ की अंगुलियां पकड़कर मशाल की रोशनी करा उस रंगभूमि से बाहर निकल गया। राजन्! समस्त पाण्डव भी द्रोण, कृपाचार्य और भीष्म जी के साथ अपने-अपने निवास स्थान को चल दिये। भारत! उस समय दर्शकों में से कोई अर्जुन की, कोई कर्ण की और कोई दुर्योधन की प्रशंसा करते हुए चले गये। दिव्य लक्षणों से लक्षित अपने पुत्र अंगराज कर्ण को पहचान कर कुन्ती के मन में बड़ी प्रसन्नता हुई; किंतु वह दूसरों पर प्रकट न हुई। जनमेजय! उस समय कर्ण को मित्र के रूप में पाकर दुर्योधन का भी अर्जुन से होने वाला भय शीघ्र दूर हो गया। वीरवर कर्ण ने शस्त्रों के अभ्यास से बड़ा परिश्रम किया था, वह भी दुर्योधन के साथ परम स्नेह और सान्त्वनापूर्ण बातें करने लगा। उस समय युधिष्ठिर को भी यह विश्वास हो गया कि इस पृथ्वी पर कर्ण के समान धनुर्धर कोई नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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