पंचत्रिंशदधिकशततम (135) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: पंचत्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 34-41 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन्! तदनन्तर दुर्योधन ने राजा धृतराष्ट्र और गंगानन्दन भीष्म की आज्ञा ले ब्राह्मणों द्वारा अभिषेक का सामान मंगवाया। फिर उसी समय महाबली एवं महारथी कर्ण को सोने के सिंहासन पर बिठाकर मन्त्रवेत्ता ब्राह्मणों ने लावा और फूलों से युक्त सुवर्णमय कलशों के जल से अंगदेश के राज्य पर अभिषिक्त किया। तब मुकुट, हार, केयूर, कंगन, अंगद,राजेचित चिह्न तथा अन्य शुभ आभूषणों से विभूषित हो वह छत्र, चंवर तथा जय-जयकार के साथ राज्य श्री से सुशोभित होने लगा। फिर ब्राह्मणों से समादृत हो राजा कर्ण ने उन्हें असीम धन प्रदान किया। राजन्! उस समय उसने कुरुश्रेष्ठ दुर्योधन से कहा- ‘नृपतिशिरोमणे! आपने मुझे जो यह राज्य प्रदान किया है, इसके अनुरूप मैं आपको क्या भेंट दूं? बताइये, आप जैसा कहेंगे वैसा ही करूंगा।’ यह सुनकर दुर्योधन ने कहा- ‘अंगराज! मैं तुम्हारे साथ ऐसी मित्रता चाहता हूं, जिसका कभी अन्त न हो’। उसके यों कहने पर कर्ण ने ‘तथास्तु’ कहकर उसके साथ मैत्री कर ली। फिर वे दोनों बड़े हर्ष से एक दूसरे को हृदय से लगाकर आनन्दमग्न हो गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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