त्रिंशदधिकशततम (130) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: त्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-34 का हिन्दी अनुवाद
युधिष्ठिर बोले- ब्रह्मन्! आप कृपाचार्य की अनुमति ले सदा यहीं रहकर भिक्षा प्राप्त करें। उनके यों कहने पर द्रोण ने हंसकर उन भरतवंशी राजकुमारों से कहा। द्रोण बोले- ये मुट्ठी भर सींकें हैं जिन्हें मैंने अस्त्र मन्त्र के द्वारा अभिमन्त्रित किया है। तुम लोग इसका बल देखा, जो दूसरे में नहीं है। मैं पहले एक सींक से उस गुल्ली को बींध दूंगा फिर दूसरी सींक से उस पहली सींक को बींध दूंगा। इसी प्रकार दूसरी को तीसरी से बींधते हुए अनेक सीकों को संयोग होने पर मुझे गुल्ली मिल जायेगी। वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर द्रोण ने जैसा कहा था, वह सब कुछ अनायास ही कर दिखाया। यह अद्भुत कार्य देखकर उन कुमारों के नेत्र आश्चर्य से खिल उठे। इसे अत्यन्त आश्चर्य मानकर वे इस प्रकार बोले। कुमारों ने कहा- ब्रह्मर्षे! अब आप शीघ्र ही इस अंगूठी को भी निकाल दीजिये। वैशम्पायन जी कहते हैं- तब महायशस्वी द्रोण ने धनुष-बाण लेकर बाण से उस अंगूठी को बींध दिया और उसे ऊपर निकाल लिया। शक्तिशाली द्रोण ने इस प्रकार कुऐं से बाण सहित अंगूठी निकाल कर उन आश्चर्यचकित कुमारों के हाथ में दे दी; किंतु वे स्वयं तनिक भी विस्मित नहीं हुए। उस अंगूठी को कुएं से निकाली हुई देखकर उन कुमारों ने द्रोण से कहा। कुमार बोले- ब्रह्मन्! हम आपको प्रणाम करते हैं। यह अद्भुत अस्त्र-कौशल दूसरे किसी में नहीं है। आप कौन हैं, किसके पुत्र हैं- यह हम जानना चाहते हैं। बताइये, हम लोग आपकी क्या सेवा करें? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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