महाभारत आदि पर्व अध्याय 130 श्लोक 18-34

त्रिंशदधिकशततम (130) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)

Prev.png

महाभारत: आदि पर्व: त्रिंशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 18-34 का हिन्दी अनुवाद


तब वे उस बीटा को निकालने के लिये बड़ी तत्‍परता के साथ प्रयत्न में लग गये: परंतु उसे प्राप्त करने का कोई भी उपाय उनके ध्‍यान में नहीं आया। इस कारण लज्जा से नतमस्‍तक होकर वे एक दूसरे की ओर देखने लगे। गुल्‍ली निकालने का कोई उपाय न मिलने के कारण वे अत्‍यन्‍त उत्‍कण्ठित हो गये। इसी समय उन्‍होंने एक श्‍याम वर्ण के ब्राह्मण को थोड़ी ही दूर पर बैठे देखा, जो अग्निहोत्र करके किसी प्रयोजन से वहाँ रुके हुए थे। वे पत्तिग्रस्‍त जान पड़ते थे। उनके सिर के बाल सफेद हो गये थे और शरीर अत्‍यन्‍त दुर्बल था। उन महात्‍मा ब्राह्मण को देखकर वे सभी कुमार उनके पास गये और उन्‍हें घेरकर खड़े हो गये। उनका उत्‍साह भंग हो गया था। कोई काम करने की इच्‍छा नहीं होती थी। मन में भारी निराशा भर गयी थी। तदनन्‍तर पराक्रमी द्रोण यह देखकर कि इन कुमारों का अभीष्ट कार्य पूर्ण नहीं हुआ है- ये उसी प्रयोजन से मेरे पास आये हैं, उस समय मंद मुस्कराहट के साथ बड़े कौशल से बोले- ‘अहो! तुम लोगों के क्षत्रिय बल को धिक्कार है और तुम लोगों की इस अस्त्र विद्या-विषयक निपुणता को भी धिक्कार है; क्‍योंकि तुम लागे भरतवंश में जन्‍म लेकर भी कुऐं में गिरी हुई गुल्‍ली को भी नहीं निकाल पाते। देखो, मैं तुम्‍हारी गुल्‍ली और अपनी इस अंगूठी दोनों को इस सींक से निकाल सकता हूँ। तुम लोग मेरी जीविका की व्‍यवस्‍था करो।’ उन कुमारों से यों कहकर शत्रुओं का दमन करने वाले द्रोण ने उस निर्जल कुऐं में अपनी अंगूठी डाल दी। उस समय कुन्‍तीनन्‍दन युधिष्ठिर ने द्रोण से कहा।

युधिष्ठिर बोले- ब्रह्मन्! आप कृपाचार्य की अनुमति ले सदा यहीं रहकर भिक्षा प्राप्त करें। उनके यों कहने पर द्रोण ने हंसकर उन भरतवंशी राजकुमारों से कहा। द्रोण बोले- ये मुट्ठी भर सींकें हैं जिन्‍हें मैंने अस्त्र मन्‍त्र के द्वारा अभिमन्त्रित किया है। तुम लोग इसका बल देखा, जो दूसरे में नहीं है। मैं पहले एक सींक से उस गुल्‍ली को बींध दूंगा फिर दूसरी सींक से उस पहली सींक को बींध दूंगा। इसी प्रकार दूसरी को तीसरी से बींधते हुए अनेक सीकों को संयोग होने पर मुझे गुल्‍ली मिल जायेगी। वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्‍तर द्रोण ने जैसा कहा था, वह सब कुछ अनायास ही कर दिखाया। यह अद्भुत कार्य देखकर उन कुमारों के नेत्र आश्चर्य से खिल उठे। इसे अत्‍यन्‍त आश्चर्य मानकर वे इस प्रकार बोले। कुमारों ने कहा- ब्रह्मर्षे! अब आप शीघ्र ही इस अंगूठी को भी निकाल दीजिये। वैशम्‍पायन जी कहते हैं- तब महायशस्‍वी द्रोण ने धनुष-बाण लेकर बाण से उस अंगूठी को बींध दिया और उसे ऊपर निकाल लिया। शक्तिशाली द्रोण ने इस प्रकार कुऐं से बाण सहित अंगूठी निकाल कर उन आश्चर्यचकित कुमारों के हाथ में दे दी; किंतु वे स्‍वयं तनिक भी विस्मित नहीं हुए। उस अंगूठी को कुएं से निकाली हुई देखकर उन कुमारों ने द्रोण से कहा। कुमार बोले- ब्रह्मन्! हम आपको प्रणाम करते हैं। यह अद्भुत अस्त्र-कौशल दूसरे किसी में नहीं है। आप कौन हैं, किसके पुत्र हैं- यह हम जानना चाहते हैं। बताइये, हम लोग आपकी क्‍या सेवा करें?

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः