सप्तविंशत्यधिकशततम (127) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: सप्तविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 40-58 का हिन्दी अनुवाद
तब भोजन के पश्चात् पाण्डव तथा धृतराष्ट्र के पुत्र सभी प्रसन्नचित्त हो एक साथ जल-क्रीड़ा करने लगे। जल-क्रीड़ा का समाप्त होने पर दिन के अन्त में विहार से थके हुए वे समस्त कुरुश्रेष्ठ वीर शुद्ध वस्त्र धारण कर सुन्दर आभूषणों से विभूषित हो उन क्रीड़ा भवनों में ही रात बिताने का विचार करेन लगे। बलवान् भीमसेन उस समय अधिक परिश्रम करने के कारण बहुत थक गये थे। वे जलक्रीड़ा के लिये आये हुए उन कुमारों को साथ लेकर विश्राम करने की इच्छा से प्रमाण कोटि के उस गृह में आये और वहीं एक स्थान में सो गये। पाण्डुनन्दन भीम थके तो थे ही, विष के मद से भी अचेत हो रहे थे। उनके अंग-अंग में विष का प्रभाव फैल गया था। अत: वहाँ ठंडी हवा पाकर ऐसे सोये कि जड़ के समान निश्चेष्ट प्रतीत होने लगे। तब दुर्योधन ने स्वयं लताओं के पाश में वीरवर भीम को कसकर बांधा। वे मुर्दे के समान हो रहे थे। फिर उसने गंगा जी के ऊंचे तट से उन्हें जल में ढकेल दिया। भीमसेन बेहोशी की दशा में जल के भीतर डूबकर नागलोक में जा पहुँचे। उस समय कितने ही नागकुमार उनके शरीर से दब गये। तब बहुत-से महाविषधर नागों ने मिलकर अपनी भयंकर विष वाली बड़ी-बड़ी दाढ़ों से भीमसेन को खूब डंसा। उनके द्वारा डंसे जाने से कालकूट विष का प्रभाव नष्ट हो गया। सर्पों के जंगम विष ने खाये हुए स्थावर विष को हर लिया। चौड़ी छाती वाले भीमसेन की त्वचा लोहे के समान कठोर थी; अत: यद्यपि उनके मर्म स्थानों में सर्पों ने दांत गड़ाये थे, तो भी वे उनकी त्वचा को भेद न सके। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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