सप्तविंशत्यधिकशततम (127) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: सप्तविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 20-39 का हिन्दी अनुवाद
मोह और ऐश्वर्य के लोभ से उसके मन में पापपूर्ण विचार भर गये थे। वह अपने भाइयों के साथ विचार करने लगा कि ‘यह मध्यम पाण्डुपुत्र कुन्तीनन्दन भीम बलवानों में सबसे बढ़कर है। इसे धोखा देकर कैद कर लेना चाहिये। यह बलवान् और पराक्रमी तो है ही, महान् शौर्य से भी सम्पन्न है। भीमसेन अकेला ही हम सब लोगों से होड़ बद लेता है। इसलिये नगरोद्यान में जब वह सो जाय, तब उसे उठाकर हम लोग गंगा जी में भी फेंक दें। इसके बाद उसके छोटे भाई अर्जुन और बड़े भाई युधिष्ठिर को बलपूर्वक कैद में डालकर मैं अकेला ही सारी पृथ्वी का शासन करूंगा।’ ऐसा निश्चय करके पापी दुर्योधन ने गंगातट पर जल-विहार के लिये ऊनी और सूती कपड़ों के विचित्र एवं विशाल गृह तैयार कराये। वे गृह सब प्रकार की अभीष्ट सामग्रियों से भरे-पूरे थे। उनके ऊपर ऊंची-ऊंची पताकाऐं फहरा रही थीं। उनमें उसने अलग-अलग अनेक प्रकार के बहुत-से कमरे बनवाये थे। भारत! गंगा तटवर्ती प्रमाण कोटि तीर्थ में किसी स्थान पर जाकर दुर्योधन ने यह सारा आयोजन करवाया था। उसने उस स्थान का नाम रखा था उदकक्रीडन। वहाँ रसोई के काम में कुशल कितने ही मनुष्यों ने जुटकर खाने-पीने के बहुत-से भक्ष्य[1], भोज्य[2], पेय[3], चोष्य[4] और लेह्य[5] पदार्थ तैयार किये। तदनन्तर राजपुरुषों ने दुर्योधन को सूचना दी कि ‘सब तैयारी पूरी हो गयी है।’ तब खोटी बुद्धि वाले दुर्योधन ने पाण्डवों से कहा- ‘आज हम लोग भाँति-भाँति के उद्यान और वनों से सुशोभित गंगा जी के तट पर चलें। वहाँ हम सब भाई एक साथ जल विहार करेंगे’। यह सुनकर युधिष्ठिर ने ‘एवमस्तु’ कहकर दुर्योधन की बात मान ली। फिर वे सभी शूरवीर कौरव पाण्डवों के साथ नगराकार रथों तथा स्वदेश में उत्पन्न श्रेष्ठ हाथियों पर सवार हो नगर से निकले और उद्यान-वन के समीप पहुँचकर साथ आये हुए प्रजावर्ग के बड़े-बड़े लोगों को विदा करके जैसे सिंह पर्वत की गुफा में प्रवेश करे, उसी प्रकार वे सब वीर भ्राता उद्यान की शोभा देखते हुए, उसमें प्रविष्ट हुए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दाँतों से काट-काटकर खाये जाने वाले मालपूए आदि को भक्ष्य कहते हैं।
- ↑ दाँत का सहारा न लेकर केवल जिह्वा के व्यापार से जिसे भोजन किया जाता है, जैसे- हलुआ, खीर आदि।
- ↑ पीने योग्य दुग्ध आदि
- ↑ चूसने योग्य वस्तु जिसका रसमात्र ग्रहण किया जाय और बाकी चीज को त्याग दिया जाय, वह चोष्य है, जैसे ईख-आम आदि।
- ↑ चाटने योग्य चटनी आदि।
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