द्वाविंशत्यलधिकशततम (122) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: द्वाविंशत्यलधिकशततम अध्याय: श्लोक 14-24 का हिन्दी अनुवाद
पत्थर की चट्टान को चूर-चूर हुआ देख महाराज पाण्डु बड़े आश्चर्य में पड़ गये। जब चन्द्रमा मघा नक्षत्र पर विराजमान थे, बृहस्पति सिंह लग्न में सुशोभित थे, सूर्यदेव दोपहर के समय आकाश के मध्य भाग में तप रहे थे, उस समय पुण्यमयी त्रयोदशी तिथी को मैत्र मुहूर्त में कुन्ती देवी ने अविचल शक्ति वाले भीमसेन को जन्म दिया था। भरतश्रेष्ठ भूपाल! जिस दिन भीमसेन का जन्म हुआ था, उसी दिन हस्तिनापुर में दुर्योधन की भी उत्पत्ति हुई। भीमसेन के जन्म लेने पर पाण्डु ने फिर इस प्रकार विचार किया कि मैं कौन-सा उपाय करूं, जिससे मुझे सब लोगों से श्रेष्ठ उत्तम पुत्र प्राप्त हो। यह संसार दैव तथा पुरुषार्थ पर अबलम्बित है। इनमें दैव तभी सुलभ (सफल) होता है, जब समय पर उद्योग किया जाय। मैंने सुना है कि देवराज इन्द्र ही सब देवताओं में प्रधान हैं, उनमें अथाह बल और उत्साह है। वे बड़े पराक्रमी एवं अपार तेजस्वी हैं। मैं तपस्या द्वारा उन्हीं को संतुष्ट करके महाबली पुत्र प्राप्त करूंगा। वे मुझे जो पुत्र देंगे, वह निश्चय ही सबसे श्रेष्ठ होगा तथा संग्राम में अपना सामना करने वाले मनुष्यों तथा मनुष्येतर प्राणियों (दैत्य-दानव आदि) को भी मारने में समर्थ होगा। अत: मैं मन, वाणी और क्रिया द्वारा बड़ी भारी तपस्या करूंगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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