द्वयधिकशततम (102) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: द्वयधिकशततम अध्याय: श्लोक 54-73 का हिन्दी अनुवाद
‘धर्मात्मन्! मैंने पहले से ही मन-ही-मन सौम नामक विमान के अधिपति राजा शाल्व को पतिरुप में वरण कर लिया था। उन्होंने भी पूर्वकाल में मेरा वरण किया था। मेरे पिता जी की भी यही इच्छा थी कि मेरा विवाह शाल्व के साथ हो। उस स्वयंवर में मुझे राजा शाल्व का ही वरण करना था। धर्मज्ञ! इन सब बातो को सोच-समझकर जो धर्म का सार प्रतीत हो, वही कार्य कीजिये। जब उस कन्या ने ब्राह्मण मण्डली के बीच वीरवर भीष्म जी से इस प्रकार कहा, तब वे उस वैवाहिक कर्म के विषय में युक्तियुक्त विचार करने लगे। वे स्वयं भी धर्म के ज्ञाता थे, फिर वेदों के पारंगत विद्वान् ब्राह्मणों के साथ भली-भाँति विचार करके उन्होंने काशिराज की ज्येष्ठ पुत्री अम्बा को उस समय शाल्व के यहाँ जाने की अनुमति दे दी। शेष दो कन्याओं का नाम अम्बिका और अम्बालिका था। उन्हें भीष्म जी ने शास्त्रोक्त विधि के अनुसार छोटे भाई विचित्रवीर्य को पत्नी रुप में प्रदान किया। उन दोनों का पाणिग्रहण करके रुप और यौवन के अभिमान से भरे हुए धर्मात्मा विचित्रवीर्य कामात्मा बन गये। उनकी वे दोनों पत्नियां सयानी थीं। उनकी अवस्था सोलह वर्ष की हो चुकी थी। उनके केश नीले और घुंघराले थे; हाथ पैरों के नख लाल और ऊंचे थे; नितम्ब और उरोज स्थूल और उभरे हुए थे। वे यह जानकर संतुष्ट थीं कि हम दोनों को अपने अनुरुप पति मिले हैं, अत: वे दोनों कल्याणमयी देवियां विचित्रवीर्य की बड़ी सेवा-पूजा करने लगीं। विचित्रवीर्य का रुप अश्विनी कुमारों के समान था। वे देवताओं के समान पराक्रमी थे। एकान्त में वे सभी नारियों के मन को मोह लेने की शक्ति रखते थे। राजा विचित्रवीर्य ने उन दोनों पत्नियों के साथ सात वर्षों तक निरन्तर विहार किया, अत: उस असंयम के परिणामस्वरुप वे युवावस्था में ही राजयक्ष्मा के शिकार हो गये।। उनके हितैषी सगे-सम्बन्धियों ने नामी और विश्वसनीय चिकित्सकों के साथ उनके रोग-निवारण की पूरी चेष्टा की, तो भी जैसे सूर्य अस्ताचल को चले जाते हैं, उसी प्रकार वे कौरव नरेश यमलोक को चले गये। धर्मात्मा गंगानन्दन भीष्म जी भाई की मृत्यु से चिन्ता और शोक में डूब गये। फिर माता सत्यवती की आज्ञा के अनुसार चलने वाले उन भीष्म जी ने ऋत्विजों तथा कुरुकुल के समस्त श्रेष्ठ पुरुषों के साथ राजा विचित्रवीर्य के सभी प्रेतकार्य अच्छी तरह कराये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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