शततम (100) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: शततम अध्याय: श्लोक 60-73 का हिन्दी अनुवाद
‘बेटा! इसमें संदेह नहीं कि मैं चिन्ता में डूबा रहता हूँ। वह चिन्ता कैसी है, सो बताता हूं, सुनो। भारत! तुम इस विशाल वंश में मेरे एक ही पुत्र हो। तुम भी सदा अस्त्र-शस्त्रों के अभ्यास में लगे रहते हो और पुरुषार्थ के लिये सदैव उद्यत रहते हो। बेटा! मैं इस जगत् की अनित्या को लेकर निरन्तर शोक ग्रस्त एवं चिन्तित रहता हूँ। गंगानन्दन! यदि किसी प्रकार तुम पर कोई विपत्ति आयी, तो उसी दिन हमारा यह वंश समाप्त हो जायेगा। इसमें संदेह नहीं कि तुम अकेले ही मेरे लिये सौ पुत्रों से भी बढ़कर हो। मैं पुन: व्यर्थ विवाह नहीं करना चाहता; किंतु हमारी वंश परम्परा का लोप न हो, इसी के लिये मुझे पुन: पत्नी की कामना हुई है। तुम्हारा कल्याण हो। धर्मवादी विद्वान् कहते हैं कि एक पुत्र का होना संतान हीनता के ही तुल्य है। भारत! एक आंख अथवा एक पुत्र यदि है, तो वह भी नहीं के बराबर है। नेत्र का नाश होने पर मानो शरीर का ही नाश हो जाता है, इसी प्रकार पुत्र के नष्ट होने पर कुल-परम्परा ही नष्ट हो जाती है। अग्निहोत्र, तीनों वेद तथा शिष्य-प्रशिष्य के क्रम से चलने वाले विद्याजनित वंश की अक्षय परम्परा- ये सब मिलकर भी जन्म से होने वाली संतान की सोलहवीं कला के भी बराबर नहीं है। भारत! महाप्राज्ञ! इस बात में तनिक भी संदेह नहीं कि संतान, कर्म और विद्या- ये तीन ज्योतियां हैं; इनमें भी जो संतान है, उसका महत्त्व सबसे अधिक है। यही वेदत्रयी पुराण तथा देवताओं का भी सनातन मत है। तात! मेरी चिन्ता का जो कारण है, वह सब तुम्हें स्पष्ट बता दिया। भारत! तुम शूरवीर हो। तुम कभी किसी की बात सहन नहीं कर सकते और सदा अस्त्र-शस्त्रों के अभ्यास में ही लगे रहते हो; अत: युद्ध के सिवा और किसी कारण से कभी तुम्हारी मृत्यु होने की सम्भावना नहीं है। इसलिये मैं इस संदेह में पड़ा हूँ कि तुम्हारे शान्त हो जाने पर इस वंश परम्परा का निर्वाह कैसे होगा? तात! यही मेरे दु:ख का कारण है; वह सब-का-सब तुम्हें बता दिया’। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! राजा के दु:ख का वह सारा कारण जानकर परमबुद्धिमान् देवव्रत ने अपनी बुद्धि से भी उस पर विचार किया। तदनन्तर वे उसी समय तुरंत अपने पिता के हितैषी बूढ़े मन्त्री के पास गये और पिता के शोक का वास्तविक कारण क्या है, इसके विषय में उनसे पूछताछ की। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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