महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 57 श्लोक 19-35

सप्तपञ्चाशत्तम (57) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्तपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 17-35 का हिन्दी अनुवाद


दान से यश, अहिंसा से आरोग्य तथा ब्राह्मणों की सेवा से राज्य एवं अतिशय ब्राह्मणत्व की प्राप्ति होती है। जल दान करने से मनुष्य को अक्षय कीर्ति प्राप्त होती है तथा अन्न-दान करने से मनुष्य को काम और भोग से पूर्णतः तृप्ति मिलती है। जो समस्त प्राणियों को सान्त्वना देता है, वह सम्पूर्ण शोकों से मुक्त हो जाता है, देवाताओं की सेवा से राज्य और दिव्यरूप प्राप्त होते हैं। मन्दिर में दीपक का प्रकाश दान करने से मनुष्य का नेत्र नीरोग होता है। दर्शनीय वस्तुओं का दान करने से मनुष्य स्मरण शक्ति और मेधा प्राप्त कर लेता है। गन्ध और पुण्य-माला दान करने से प्रचुर यश की प्राप्ति होती है। सिर के बाल और दाढ़ी-मूंछ धारण करने वालों को श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है।

पृथ्वीनाथ! बारह वर्षों तक सम्पूर्ण भोगों का त्याग, दीक्षा (जप आदि नियमों का ग्रहण) तथा तीनों समय स्नान करने से वीर पुरुषों की अपेक्षा भी श्रेष्ठ गति प्राप्ति होती है। नरश्रेष्ठ! जो अपनी पुत्री का ब्रह्मविवाह की विधि से सुयोग्य वर को दान करता है, उसे दास-दासी, अलंकार, क्षेत्र और घर प्राप्त होते हैं। भारत! यज्ञ और उपवास करने से मनुष्य स्वर्गलोक में जाता है तथा फल-फूल का दान करने वाला मानव कल्याणमय मोक्षस्वरूप ज्ञान प्राप्त कर लेता है। सोने से मढ़े हुए सींगों द्वारा सुशोभित होने वाली एक हज़ार गौओं का दान करने से मनुष्य स्वर्ग में पुण्यमय देवलोक को प्राप्त होता है, ऐसा स्वर्गवासी देववृन्द कहते हैं। जिसके सींगों के अग्र भाग में सोना मढ़ा हुआ हो, ऐसी गाय का काँस से बने हुए दुग्धपात्र और बछड़े समेत जो दान करता है, उस पुरुष के पास वह गौ उन्हीं गुणों से युक्त कामधेनु होकर आती है। उस गौ के शरीर में जितने रोएं हैं, उतने वर्षों तक मनुष्य गोदान के पुण्य से स्वर्गीय सुख भोगता है। इतना ही नहीं, वह गौ उसके पुत्र-पौत्र आदि सात पीढ़ियों तक समस्त कुल का परलोक में उद्धार कर देती है। जो मनुष्य सोने के सुन्दर सींग बनवाकर और द्रव्यमय उत्तरीय देकर कांस्यमय दुग्धपात्र तथा दक्षिणा सहित तिल की धेनु का ब्राह्मण को दान करता है, उसे वसुओं के लोक सुलभ होते हैं।

जैसे महासागर के बीच में पड़ी हुई नाव वायु का सहारा पाकर पार पहुँचा देती है, उसी प्रकार अपने कर्मों से बंधकर घोर अन्धकारमय नरक में गिरते हुए मनुष्यों को गोदान ही परलोक में पार लगाता है। जो मनुष्य ब्राह्मण विधि से अपनी कन्या का दान करता है, ब्राह्मण को भूमिदान देता है तथा विधिपूर्वक अन्न का दान करता है, उसे इन्द्रलोक की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य स्वाध्यायशील और सदाचारी ब्राह्मण को सर्वगुण सम्पन्न गृह और शैय्या आदि गृहस्थी के सामान देता है, उसे उत्तर कुरुदेश में निवास प्राप्त होता है। भारत ढोने में समर्थ बैल और गायों का दान करने से मनुष्य को वसुओं के लोक प्राप्त होते हैं। सुवर्णमय आभूषणों का दान स्वर्गलोक की प्राप्ति कराने वाला बताया गया है और विशुद्ध पक्के सोने का दान उससे भी उत्तम फल देता है। छाता देने से उत्तम घर, जूता दान करने से सवारी, वस्त्र देने से सुन्दर रूप और गन्ध दान करने से सुगन्धित शरीर की प्राप्ति होती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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