चतुर्थ (4) अध्याय :अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुर्थ अध्याय: श्लोक 42-62 का हिन्दी अनुवाद
तब उन महातपस्वी ऋषि ने अपनी पत्नी से कहा- "अच्छा, ऐसा ही हो।" तदनन्तर सत्यवती ने जमदग्नि नामक शुभगुण सम्पन्न पुत्र को जन्म दिया। राजेन्द्र! उन्हीं ब्रह्मर्षि के कृपा-प्रसाद से गाधि की यशस्विनी पत्नी ने ब्रहावादी विश्वामित्र को उत्पन्न किया। इसीलिये महातपस्वी विश्वामित्र क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मणत्व को प्राप्त हो ब्राह्मण वंश के प्रवर्तक हुए। उन ब्रह्मवेत्ता तपस्वी के महामनस्वी पुत्र भी ब्राह्मण वंश की वृद्धि करने वाले और गोत्रकर्ता हुए। भगवान मधुच्छन्दा, शक्तिशाली देवरात, अक्षीण, शकुन्त, बभ्रु, कालपथ, विख्यात याज्ञवल्य, महाव्रती स्थूण, उलूक, यमदूत, सैन्धवायन ऋषि, वल्गुजंघ, महर्षि गालव, वज्रमुनि, विख्यात सालंकायन, लीलाढ्य, नारद, कूर्चामुख, वादूलि, मुसल, वक्षोग्रीव, आड्ंघ्रिक, नैकदृक, शिलायूप, शित, शुचिचक्रक, मारुतन्तव्य, वातघ्न, आश्वलायन, श्यामायन, गार्ग्य, जाबालि, सुश्रुत, कारीषि, संश्रुत्य, पर, पौरव, तन्तु, महर्षि कपिल, मुनिवर ताडकायन, उपगहन, आसुरायणि ऋषि, मार्दमर्षि,हिरण्याक्ष, जंगारि, बाभ्रवायणि, भूति, विभूति, सूत, सुरकृत, अरालि, नाचिक, चाम्पेय, उज्जयन, नवतन्तु, बकनख, सेयन, यति, अम्भोरूह, चारूमत्स्य, शिरीषी, गार्दभि, ऊर्जयोनि, उदापेक्षी, और महर्षि नारद- ये सभी विश्वामित्र के पुत्र एवं ब्रहावादी ऋषि थे। राजा युधिष्ठिर! महातपस्वी विश्वामित्र यद्यपि क्षत्रिय थे तथापि ऋचीक मुनि ने उनमें परम उत्कृष्ट ब्रह्मतेज का आधान किया था। भरतश्रेष्ठ! इस प्रकार मैंने तुम्हें सोम, सूर्य और अग्नि के समन तेजस्वी विश्वामित्र के जन्म का सारा वृतान्त यथार्थ रूप से बताया है। नृपश्रेष्ठ! अब फिर तुम्हें जहाँ-जहाँ संदेह हो, उस-उस विषय की बात मुझसे पूछो। मैं तुम्हारे संशय का निवारण करूँगा।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्तर्गत दानधर्म पर्व में विश्वामित्र का उपाख्यान विषयक चौथा अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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