अष्टचत्वारिंश (48) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 12-20 का हिन्दी अनुवाद
इस प्रकार वर्णसंकर मनुष्य भी समान जाति की स्त्रियों में अपने ही समान वर्ण वाले पुत्रों की उत्पति करते हैं और यदि परस्पर विभिन्न जाति की स्त्रियों से उनका संसर्ग होता है तो वे अपनी अपेक्षा भी निन्दनीय संतानों को ही जन्म देते हैं। जैसे शूद्र ब्राह्मणी के गर्भ से चाण्डाल नामक बाह्य (वर्ण-बहिष्कृत) पुत्र उत्पन्न करता है, उसी प्रकार उस ब्राह्य जाति का मनुष्य भी ब्राह्मण आदि चारों वर्णों की एवं बाह्यतर जाति की स्त्रियों के साथ संसर्ग करके अपनी अपेक्षा भी नीच जाति वाला पुत्र पैदा करता है। इस तरह ब्राह्य और बाह्यतर जाति की स्त्रियों से समागम करने पर प्रतिलोम वर्ण संकरों की सृष्टि बढ़ती जाती है। क्रमश: हीन-से-हीन जाति के बालक जन्म लेने लगते हैं। इन संकर जातियों की संख्या सामान्यत: पंद्रह है। अगम्या स्त्री के साथ समागम करने पर वर्णसंकर संतान की उत्पत्ति होती है। मागध जाति की सैरन्ध्री स्त्रियों से यदि बाह्य जातिय पुरुषों का संसर्ग हो तो उससे जो पुत्र उत्पन्न होता है, वह राजा आदि पुरुषों के श्रृंगार करने तथा उनके शरीर में अंगराग लगाने आदि की सेवाओं का जानकार होता है और दास न होकर भी दासवृत्ति से जीवन निर्वाह करने वाला होता है। मागधों के आवान्तर भेद सैरन्ध्र जाति की स्त्री से यदि आयोगव जाति का पुरुष समागम करे तो वह आयोगव जाति का पुत्र उत्पन्न करता है, जो जंगलों में जाल बिछाकर पशुओं को फँसाने का काम करके जीवन निर्वाह करता है। उसी जाति की स्त्री के साथ यदि वैदेह जाति का पुरुष समागम करता है तो वह मदिरा बनाने वाले मैरेयक जाति के पुत्र को जन्म देता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज