पञ्चचत्वारिंश (45) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: पञ्चचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 15-23 का हिन्दी अनुवाद
"जो मनुष्य अपने पुत्र को बेचकर धन पाना चाहता है अथवा जीविका के लिये मूल्य लेकर कन्या को बेच देता है, वह मूढ़ कुम्भीपाक आदि सात नरकों से भी निकृष्ट कालसूत्र नामक नरक में पड़कर अपने ही मल-मूत्र और पसीने का भक्षण करता है।" राजन! कुछ लोग आर्ष विवाह में एक गाय और एक बैल- इन दो पशुओं को मूल्य के रूप में लेने का विधान बताते हैं, परंतु यह भी मिथ्या ही है, क्योंकि मूल्य थोड़ा लिया जाये या बहुत, उतने ही से वह कन्या का विक्रय हो जाता है। यद्यपि कुछ पुरुषों ने ऐसा आचरण किया है, परंतु यह सनातन धर्म नहीं है। दूसरे लोगों में भी लोकाचारवश बहुत-सी प्रवृत्तियाँ देखी जाती हैं। जो किसी कुमारी कन्या को बलपूर्वक अपने वश में करके उसका उपभोग करते हैं, वे पापाचारी मनुष्य अन्धकारपूर्ण नरक में गिरते हैं। किसी दूसरे मनुष्य को भी नहीं बेचना चाहिये, फिर अपनी संतान को बेचने की तो बात ही क्या? अधर्ममूलक धन से किया हुआ कोई भी धर्म सफल नहीं होता।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्तर्गत दानधर्म पर्व में विवाह धर्म सम्बन्धी यम गाथा नामक पैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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