महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 23 श्लोक 46-58

त्रयोविंश (23) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

Prev.png

महाभारत: अनुशासन पर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 46-58 का हिन्दी अनुवाद


भरतनन्दन! राजेन्द्र! जो तीर्थयात्रा आदि दूसरा प्रयोजन बताकर उसी के बहाने अपनी जीविका के लिये धन मांगता है अथवा ’मुझे अमुक (यज्ञादि) कर्म करने के लिये धन दीजिये’ ऐसा कहकर जो दाता को अपनी ओर अभिमुख करता है, उसके लिये भी वही झूठी शपथ खाने का पाप बताया गया है। युधिष्ठिर! जो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वेदव्रत का पालन न करने वाले ब्राह्मणों को श्राद्ध में मंत्रोच्चारणपूर्वक अन्न परोसते हैं, उन्हें भी गाय की झूठी शपथ खाने का पाप लगता है।

युधिष्ठिर ने पूछा- पितामह! देवयज्ञ अथवा श्राद्धकर्म में जो दान दिया जाता है, वह कैसे पुरुषों को देने से महान फल की प्राप्ति कराने वाला होता है? मैं इस बात को जानना चाहता हूँ।

भीष्म जी ने कहा- युधिष्ठिर! जैसे किसान वर्षा की बाट जोहता रहता है, उसी प्रकार जिनके घरों की स्त्रियां अपने स्वामी के खा लेने पर बचे हुए अन्न की प्रतीक्षा करती रहती हैं, (अर्थात जिनके घर में बनी हुई रसोई के सिवा और अन्न का संग्रह न हो) उन निर्धन ब्राह्मणों को तुम अवश्य भोजन कराओ। राजन! जो सदाचारपरायण हों, जिनकी जीविका का साधन नष्ट हो गया हो और इसीलिये भोजन न मिलने के कारण जो अत्यन्त दुर्बल हो गये हों, ऐसे लोग यदि याचक होकर दाता के पास आते हैं तो उन्हें दिया हुआ दान महान फल की प्राप्ति कराने वाला होता है। नरेश्वर! जो सदाचार के ही भक्त हैं, जिनके घर में सदाचार का ही पालन होता है, जिन्हें सदाचार का ही बल है तथा जिन्होंने सदाचार का ही आश्रय ले रखा है, वे यदि आवश्यकता पड़ने पर याचना करते हैं तो उनको दिया हुआ दान महान फल की प्राप्ति कराने वाला होता है।

युधिष्ठिर! चोरों और शत्रुओं के भय से पीड़ित होकर आये हुए जो याचक केवल भोजन चाहते हैं, उन्हें दिया हुआ दान महान फल की प्राप्ति कराने वाला होता है। जिसके मन में किसी तरह का कपट नहीं है, अत्यन्त दरिद्रता के कारण जिसके हाथ में अन्न आते ही उसके भूखे बच्चे ’मुझे दो, मुझे दो’ ऐसा कहकर मांगने लगते हैं; ऐसे निर्धन ब्राह्मण और उसके उन बच्चों को दिया हुआ दान महान फलदायक होता है। देश में विप्लव होने के समय जिनके धन और स्त्रियाँ छिन गयी हों; वे ब्राह्मण यदि धन की याचना के लिये आये तो उन्हें दिया हुआ दान महान फलदायक होता है। जो व्रत और नियम में लगे हुए ब्राह्मण वेद-शास्त्रों की सम्मति के अनुसार चलते हैं और अपने व्रत की समाप्ति के लिये धन चाहते हैं, उन्हें देने से महान फल की प्राप्ति होती है। जो पाखण्डियों के धर्म से दूर रहते हैं, जिनके पस धन का अभाव है तथा जो अन्न न मिलने के कारण दुर्बल हो गये हैं, उनको दिया हुआ दान महान फलदायक होता है।

जो विद्वान पुरुष व्रतों का पारण, गुरुदक्षिणा, यज्ञदक्षिणा तथा विवाह के लिये धन चाहते हों, उन्हें दिया हुआ दान महान फलदायक होता है। जो माता-पिता की रक्षा के लिये, स्त्री-पुत्रों के पालन तथा महान रोगों से छुटकारा पाने के लिये धन चाहते हैं, उन्हें दिया हुआ दान महान फलदायक होता है। जो बालक और स्त्रियाँ सब प्रकार के साधनों से रहित होने के कारण केवल भोजन चाहती हैं, उन्हें भोजन देकर दाता स्वर्ग में जाते हैं। वे नरक में नहीं पड़ते हैं। प्रभावशाली डाकुओं ने जिन निर्दोष मनुष्यों का सर्वस्व छीन लिया हो, अतः जो खाने के लिये अन्न चाहते हों, उन्हें दिया हुआ दान महान फलदायक होता है। जो तपस्वी और तपोनिष्ठ हैं तथा तपस्वीजनों के लिये ही भीख मांगते हैं, ऐसे याचक यदि कुछ चाहते हैं तो उन्हें दिया हुआ दान महान फलदायक होता है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः