अष्टादश (18) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: अष्टादश अध्याय: श्लोक 71-83 का हिन्दी अनुवाद
जो इस भूतल में प्रवेश करके महादेव जी की पूर्वकृत सृष्टि की रक्षा करते हैं, जो समस्त जगत के रक्षक, विभिन्न प्राणियों की सृष्टि करने वाले और श्रेष्ठ हैं, वे सम्पूर्ण देवता भगवान शिव से ही प्रकट हुए हैं। ऋषि-मुनि तपस्या द्वारा जिसका अन्वेषण करते हैं, उस सदा स्थिर रहने वाले अनिर्वचनीय परम सूक्ष्म तत्त्वस्वरूप सदाशिव को मैं जीवन-रक्षा के लिये नमस्कार करता हूँ। जिन अविनाशी प्रभु की मेरे द्वारा सदा ही स्तुति की गयी है, वे महादेव यहाँ मुझे अभीष्ट वरदान दें। जो पुरुष इन्द्रियों को वश में करके पवित्र होकर इस स्तोत्र का पाठ करेगा और नियमपूर्वक एक मास तक अखण्ड रूप से इस पाठ को चलाता रहेगा, वह अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त कर लेगा। कुन्तीनन्दन! ब्राह्मण इसके पाठ से सम्पूर्ण वेदों के स्वाध्याय का फल पाता है। क्षत्रिय समस्त पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर लेता है। वैश्य व्यापार कुशलता एवं महान लाभ का भागी होता है और शुद्र इहलोक में सुख तथा परलोक में सद्गति पाता है। जो लोग सम्पूर्ण दोषों का नाश करने वाले इस पुण्यजनक पवित्र स्तवराज का पाठ करके भगवान रुद्र के चिन्तन में मन लगाते हैं, वे यशस्वी होते हैं। भरतनन्दन! मनुष्य के शरीर में जितने रोमकूप होते हैं, इस स्तोत्र का पाठ करने वाला मनुष्य उतने ही हज़ार वर्षों तक स्वर्ग में निवास करता है।"
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्तर्गत दानधर्म पर्व में मेघवाहन पर्व की कथा विषयक अठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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