सत्रहवां (17) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 123- 137 का हिन्दी अनुवाद
801. सफलोलदयः- जिसका अवतार रूप में प्रकट होना सफल है, 802. त्रिलोचनः- त्रिनेत्रधारी, 803. विषण्णंगः- अंगरहित अर्थात् सर्वथा निराकार, 804. मणिविद्धः- मणि का कुण्डल पहनने के लिये, छिदे हुए कर्ण वाले, 805. जटाधरः- जटाधारी, 806. बिन्दुः- अनुस्वाररूप, 807. विसर्गः- विसर्जनीयस्वरूप, 808. सुमुखः- सुन्दर मुख वाले, 809 शरः- अनुस्वाररूप, 810. सर्वायुधः- सम्पूर्ण आयुधों से युक्त, 811. सहः- सहनशील, 812 निवेदनः- सब प्रकार की वृत्ति से रहित ज्ञान वाले, 813. सुखाजातः- सब वृत्तियों का लय होने पर सुखरूप से प्रकट होने वाले, 814. सुगन्धारः- उत्तम गन्ध से युक्त, 815. महाधनुः- पिनाक नामक विशाल धनुष धारण करने वाले, 816. भगवान गन्धपाली- उत्तम गन्ध की रक्षा करने वाले भगवान्, 817. सर्वकर्मणामुत्थानः- समस्त कर्मों के उत्थानस्वरूप, 818. मन्थानो बहुलो वायुः- विश्व को मथ डालने में समर्थ प्रलयकाल की महान् वायुस्वरूप, 819. सकलः- सम्पूर्ण कलाओं से युक्त, 820. सर्वलोचनः- सब के दृष्टा, 821. तलस्तालः- हाथ पर ही ताल देने वाले, 822. करस्थली- हाथों से ही भोजनपात्र का काम लेने वाले, 823. संहननः- सुदृढ़ शरीर वाले, 824. महान्- श्रेष्ठतम्, 825. छत्रम्- छत्र के समान पाप-ताप से सुरक्षित रखने वाले, 826. सुच्छत्रः- उत्तम छत्रस्वरूप, 827. विख्यातो लोकः- सुप्रसिद्ध लोकस्वरूप, 828. सर्वाश्रयः क्रमः- सब के आधारभूत गति, 829. मुण्डः- मुण्डित-मस्तक, 830. विरूपः- विकट रूप वाले, 831. विकृतः- सम्पूर्ण विपरीत क्रियाओं को धारण करने वाले, 832. दण्डी- दण्डधारी, 833. कुण्डी- खप्परधारी, 834. विकुर्वणः- क्रिया द्वारा अलभ्य, 835. हर्यक्षः- सिंहस्वरूप, 836. ककुभः- सम्पूर्ण दिशास्वरूप, 837. वज्री- वज्रधारी, 838. शतजिहवः- सैकड़ों जिह्वा वाले, 839. सहस्रपात् सहस्रमूर्धा- सहस्रों पैर और मस्तक वाले, 840. देवेन्द्रः- देवताओं के राजा। 841. सर्वदेवमयः- सम्पूर्ण देवस्वरूप, 842. गुरुः- सब के ज्ञानदाता, 843. सहस्रबाहुः- सहस्रों भुजाओं वाले, 844. सर्वांगः- समस्त अंगों से सम्पन्न, 845.शरण्यः- शरण लेने के योग्य, 846. सर्वलोककृत्- सम्पूर्ण लोकों के उत्पन्न करने वाले, 847. पवित्रम्- परम पावन, 848. त्रिककुन्मन्त्रः- त्रिपदा गायत्रीरूप, 849. कनिष्ठः- अदिति के पुत्रों में छोटे, वामनरूपधारी विष्णु, 850. कृष्णपिगंलः- श्याम-गैरहरि-हर-मूर्ति, 851. ब्रह्मदण्डविनिर्माता- ब्रह्मदण्ड का निर्माण करने वाले, 852.शतध्नीपाषशक्तिमान्- शतध्नी, पाश और शक्ति से युक्त, 853. पद्मगर्भः- ब्रह्मस्वरूप, 854. महागर्भः- जगतरूप गर्भ को धारण करने वाले होने से महागर्भ, 855. ब्रह्मगर्भः- वेद को उदर में धारण करने वाले, 856. जलोद्भव:- एकार्णव के जल में प्रकट होने वाले, 857. गभस्तिः- सूर्यस्वरूप, 858. ब्रह्मकृत्- वेदों का आविष्कार करने वाले, 859. ब्रह्मी- वेदाध्यायी, 860. ब्रह्मवित्- वेदार्थवेत्ता, 861. ब्राह्मणः- ब्रह्मनिष्ठ, 862. गतिः- ब्रह्मनिष्ठों की परमगति, 863. अनत्नरूपः- अनन्त रूप वाले, 864. नैकात्मा- अनेक शरीरधारी, 865. तिग्मतेजाः स्वयम्भुवः- ब्रह्मा जी की अपेक्षा प्रचण्ड तेजस्वी, 866.आत्मा- देश-काल-वस्तुकृत उपाधि से अतीत स्वरूप वाले, 867. पशुपतिः- जीवों के स्वामी, 868. वातरंहाः- वायु के समान वेगशाली, 869. मनोजवः- मन के समान वेगशाली, 870. चन्दनी- चन्दन चर्चित अंग वाले, 871. पद्मनालाग्रः- पद्मनाल के मूल विष्णुस्वरूप, 872. सुरभ्युतरणः- सुरभि को नीचे उतारने वाले, 873. नरः- पुरुषरूप, 874. कर्णिकारमहास्रग्वी- कनेर की बहुत बड़ी माला धारण करने वाले, 875. नीलमौलिः- मस्तक पर नील मणिमय मुकुट धारण करने वाले, 876. पिनाकधृत्- पिनाक धनुष को धारण करने वाले, 877. उमापतिः- उमा-ब्रह्मविद्या के स्वामी, 878. उमाकान्तः- पार्वती के प्राण-प्रियतम, 879. जाह्नवीधृत्- गंगा को मस्तक पर धारण करने वाले, 880. उमाधवः- पार्वतीपति। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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