महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 152 श्लोक 17-28

द्विपन्चाशदधिकशततम (152) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासनपर्व: द्विपंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-28 का हिन्दी अनुवाद


ब्राह्मण क्षत्रियों के आश्रित रहकर जीविका चलाते हैं, किन्त क्षत्रिय कभी ब्राह्मण के आश्रय में नहीं रहता। वेदों के अध्ययनाध्यापन के ब्याज से जीविका चलाने वाले ब्राह्मण इस भूतल पर क्षत्रियों के ही सहारे भोजन पाते हैं। प्रजापालनरूपी धर्म क्षत्रियों पर ही अवलम्बित है। क्षत्रिय से ही ब्राह्मणों को जीविका प्राप्त होती है। फिर ब्राह्मण क्षत्रिय से श्रेष्ठ कैसे हो सकता है? आज से मैं सब प्राणियों से श्रेष्ठ कहे जाने वाले, सदा भीख माँगकर जीवन-निर्वाह करने वाले और अपने को सबसे उत्तम मानने वाले ब्राह्मणों को अपने अधीन रखूँगा।

आकाश में स्थित हुई इस गायत्री नामक कन्या ने जो ब्राह्मणों को क्षत्रियों से श्रेष्ठ बतलाया है, वह बिलकुल झूठ है। मृगछाला धारण करने वाले सभी ब्राह्मण प्रायः विवश होते हैं, मैं इन सबको जीत लूँगा। तीनों लोकों में कोई भी देवता या मनुष्य ऐसा नहीं है, जो मुझे राज्य से भ्रष्ट करे। अतः मैं ब्राह्मण से श्रेष्ठ हूँ। संसार में अब तक ब्राह्मण ही सबसे श्रेष्ठ माने जाते थे, किन्तु आज से मैं क्षत्रियों की प्रधानता स्थापित करूँगा। संग्राम में कोई भी मेरे बल को नहीं सह सकता। अर्जुन की यह बात सुनकर निशाचरी भी भयभीत हो गयी।

तदनन्तर अन्तरिक्ष में स्थित हुए वायु देवता ने कहा- 'कार्तवीर्य! तुम इस कलुषित भाव को त्याग दो और ब्राह्मणों को नमस्कार करो। यदि इनकी बुराई करोगे तो तुम्हारे राज्य में हलचल मच जायेगी अथवा महीपाल! महान शक्तिशाली ब्राह्मण तुम्हें शान्त कर देंगे। यदि तुमने उनके उत्साह में बाधा डाली तो वे तुम्हें राज्य से बाहर निकाल देंगे।'

यह बात सुनकर कार्तवीर्य ने पूछा- 'महानुभाव! आप कौन हैं?'

तब वायु देवता ने उससे कहा- 'राजन! मैं देवताओं का दूत वायु हूँ और तुम्हें हित की बात बता रहा हूँ।'

कार्तवीर्य अर्जुन ने कहा- 'वायुदेव! ऐसी बात कहकर आपने ब्राह्मणों के प्रति भक्ति और अनुराग का परिचय दिया है। अच्छा आपकी जानकारी में यदि पृथ्वी के समान क्षमाशील ब्राह्मण हो तो ऐसे द्विज को मुझे बताइये अथवा यदि कोई जल, अग्नि, सूर्य, वायु एवं आकाश के समान श्रेष्ठ ब्राह्मण हो तो उसको भी बताइये।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में वायु देवता और अर्जुन के संवाद के प्रसंग में ब्राह्मणों का माहात्म्य विषयक एक सौ बावनवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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