चतुर्दश (14) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 346-366 का हिन्दी अनुवाद
प्रभो! यदि आप मुझ पर संतुष्ट हैं और मुझे वर देना चाहते हैं तो हे देव! हे सुरेश्वर! मेरी सदा आप में भक्ति बनी रहे। सुरश्रेष्ठ! विभो! आपकी कृपा से मैं भूत, वर्तमान और भविष्य को जान सकूँ, ऐसा मेरा निश्चय है। मैं अपने बन्धु-बान्धवों सहित सदा अक्षय दूध-भात का भोजन प्राप्त करूँ और हमारे इस आश्रम में सदा आपका निकट निवास रहे। मेरे ऐसा कहने पर लोकपूजित चराचरगुरु महातेजस्वी महेश्वर भगवान शिव मुझसे यों बोले। भगवान शिव ने कहा- 'ब्रह्मन! तुम दु:ख से रहित अजर-अमर हो जाओ। यशस्वी, तेजस्वी तथा दिव्य ज्ञान से सम्पन्न बने रहो। मेरी कृपा से तुम ऋषियों के भी दर्शनीय एवं आदरणीय होओगे तथा सदा शीलवान, गुणवान, सर्वज्ञ एवं प्रियदर्शन बने रहोगे। तुम्हें अक्षय यौवन और अग्नि के समान तेज प्राप्त हो। तुम्हारे लिये क्षीरसागर सुलभ हो जायेगा। तुम जहाँ-जहाँ प्रिय वस्तु की इच्छा करोगे, वहाँ-वहाँ तुम्हारी सारी कामना सफल होगी और तुम्हें क्षीरसागर का सान्निध्य प्राप्त होगा। तुम अपने भाई-बन्धुओं के साथ एक कल्प तक अमृत सहित दूध-भात का भोजन पाते रहो। तत्पश्चात तुम मुझे प्राप्त हो जाओगे। तुम्हारे बन्धु-बान्धव, कुल तथा गोत्र की परम्परा सदा अक्षय बनी रहेगी।। द्विजश्रेष्ठ! मुझमें तुम्हारी सदा अचल भक्ति होगी तथा द्विजप्रवर! तुम्हारे इस आश्रम के निकट मैं सदा अदृश्य रूप से निवास करूँगा। बेटा! तुम इच्छानुसार यहाँ रहो। कभी किसी बात के लिये चिन्ता न करना। विप्रवर! तुम्हारे स्मरण करने पर मैं पुन: तुम्हें दर्शन दूँगा।' ऐसा कहकर वे करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी भगवान शंकर उपर्युक्त वर प्रदान करके वहीं अन्तर्धान हो गये। श्रीकृष्ण! इस प्रकार मैंने समाधि के द्वारा देवाधिदेव भगवान शंकर का प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त किया। उन बुद्धिमान महादेव जी ने जो कुछ कहा था, वह सब मुझे प्राप्त हो गया है। श्रीकृष्ण! यह सब आप प्रत्यक्ष देख लें। यहाँ सिद्ध महर्षि, विद्याधर, यक्ष, गंधर्व और अप्सराएँ विद्यमान हैं। देखिये, यहाँ के वृक्ष, लता और गुल्म सब प्रकार के फूल और फल देने वाले हैं। ये सभी ऋतुओं के फूलों से युक्त, सुखदायक पल्लवों से सम्पन्न और सुगन्ध से परिपूर्ण हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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