महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 149 श्लोक 93-98

एकोनपन्चाशदधिकशततम (149) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासनपर: एकोनपन्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 93-98 का हिन्दी अनुवाद


747. अमानी- स्वयं मान न चाहने वाले, 748. मानदः- दूसरों को मान देने वाले, 749. मान्यः- सबके पूजने योग्य माननीय, 750. लोकस्वामी- चौदह भुवनों के स्वामी, 751. त्रिलोकधृक्- तीनों लोकों को धारण करने वाले, 750. सुमेधाः- अति उत्तम सुन्दर बुद्धि वाले, 753. मेधजः- यज्ञ में प्रकट होने वाले, 754. धन्यः- नित्य कृतकृत्य होने के कारण सर्वथा धन्यवाद के पात्र, 755. सत्यमेधाः- सच्ची और श्रेष्ठ बुद्धि वाले, 756. धराधरः- अनन्त भगवान के रूप से पृथ्वी को धारण करने वाले, 757. तेजोवृषः- अपने भक्तों पर आनन्दमय तेज की वर्षा करने वाले, 758. द्युतिधरः- परम कान्ति को धारण करने वाले, 759. सर्वशस्त्रभृतां वरः- समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ, 760. प्रग्रहः- भक्तों के द्वारा अर्पित पत्र-पुष्पादि को ग्रहण करने वाले, 761. निग्रहः- सबका निग्रह करने वाले, 762. व्यग्रः- अपने भक्तों को अभीष्ट फल देने में लगे हुए, 763. नैकश्रृंगः- नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपातरूप चार सींगों को धारण करने वाले शब्दब्रह्मस्वरूप, 764. गदाग्रजः- गद से पहले जन्म लेने वाले श्रीकृष्ण

765. चतुर्मूर्तिः- राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न रूप चार मूर्तियों वाले, 766. चतुर्बाहुः- चार भुजाओं वाले, 767. चतुर्व्यूहः- वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध- इन चार व्यूहों से युक्त, 768. चतुर्गतिः- सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य, सायुज्य रूप चार परम गतिस्वरूप, 769. चतुरात्मा- मन, बुद्धि, अहंकार और चित्तरूप चार अन्तःकरण वाले, 770. चतुर्भावः- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- इन चारों पुरुषार्थों के उत्पत्ति स्थान, 771. चतुर्वेदवित्- चारों वेदों के अर्थ को भलीभाँति जानने वाले, 772. एकपात्- एक पाद वाले यानि एक पाद (अंश) से समस्त विश्व को व्याप्त करने वाले, 773 समावर्तः- संसार चक्र को भलीभाँति घुमाने वाले, 774. अनिवृत्तात्मा- सर्वत्र विद्यमान होने के कारण जिनका आत्मा कहीं से भी हटा हुआ नहीं है, ऐसे, 775. दुर्जयः- किसी से भी जीतने में न आने वाले, 776. दुरतिक्रमः- जिनकी आज्ञा का कोई उल्लंघन नहीं कर सके, ऐसे, 777. दुर्लभः- बिना भक्ति के प्राप्त न होने वाले, 778. दुर्गमः- कठिनता से जानने में आने वाले, 779. दुर्गः- कठिनता से प्राप्त होने वाले, 780. दुरावासः- बड़ी कठिनता से योगीजनों द्वारा हृदय में बसाये जाने वाले, 781. दुरारिहा- दुष्ट मार्ग में चलने वाले दैत्यों का वध करने वाले।

782. शुभांगः- कल्याणकारक सुन्दर अंगों वाले, 783. लोकसारंगः- लोकों के सार को ग्रहण करने वाले, 784. सु तन्तुः- सुन्दर विस्तृत जगत्रूप तन्तु वाले, 785. तन्तु वर्धनः- पूर्वोक्त जगत-तन्तु को बढ़ाने वाले, 786. इन्द्रकर्मा- इन्द्र के समान कर्म वाले, 787. महाकर्मा- बड़े-बड़े कर्म करने वाले, 788. कृतकर्मा- जो समस्त कर्तव्य कर्म कर चुके हों, जिनका कोई कर्तव्य शेष न रहा हो- ऐसे कृतकृत्य, 789. कृतागमः- स्वोचित अनेक कार्यों को पूर्ण करने के लिये अवतार धारण करके अने वाले, 790. उद्भवः- स्वेच्छा से श्रेष्ठ जन्म धारण करने वाले, 791. सुन्दरः- परम सुन्दर, 792. सुन्दः- परम करुणाशील, 793. रत्ननाथः- रत्न के समान सुन्दर नाभि वाले, 794. सुलोचनः- सुन्दर नेत्रों वाले, 795. अर्कः- ब्रह्मादि पूज्य पुरुषों के भी पूजनीय, 796. वाजसनः- याचकों को अन्न प्रदान करने वाले, 797. श्रृंगी- प्रलयकाल में सींगयुक्त मत्स्यविशेष का रूप धारण करने वाले, 798. जयन्तः- शत्रुओं को पूर्णतया जीतने वाले, 799. सर्वविज्जयी- सब कुछ जानने वाले और सबको जीतने वाले।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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