महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 149 श्लोक 42-48

एकोनपन्चाशदधिकशततम (149) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

Prev.png

महाभारत: अनुशासनपर: एकोनपन्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 42-48 का हिन्दी अनुवाद


265. सुभुजः- जगत की रक्षा करने वाली अति सुन्दर भुजाओं वाले, 266. दुर्धरः- ध्यान द्वारा कठिनता से धारण किये जा सकने वाले, 267. वाग्मी- वेदमयी वाणी को उत्पन्न करने वाले, 268. महेन्द्रः- ईश्वरों के भी ईश्वर, 269. वसुदः- धन देने वाले, 270. वसुः- धनरूप, 271. नैकरूपः- अनेक रूपधारी, 272. बृहद्रूपः- विश्वरूपधारी, 273. शिपिविष्टः- सूर्यकिरणों में स्थित रहने वाले, 274. प्रकाशनः- सबको प्रकाशित करने वाले, 275. ओजस्तेजोद्युतिधरः- प्राण और बल, शूरवीरता आदि गुण तथा ज्ञान की दीप्ति को धारण करने वाले, 276. प्रकाशात्मा- प्रकाशरूप, 277. प्रतापनः- सूर्य आदि अपनी विभूतियों से विश्व को तप्त करने वाले, 278. ऋद्धः- धर्म, ज्ञान और वैराग्यादि से सम्पन्न, 279. स्पष्टाक्षरः- ओंकाररूप स्पष्ट अक्षर वाले, 280. मन्त्रः- ऋक्, साम और यजु के मन्त्रस्वरूप, 281. चन्द्रांशुः- संसारताप से संतप्तचित्त पुरुषों को चन्द्रमा की किरणों के समान आहलादित करने वाले, 282. भास्करद्युतिः- सूर्य के समान प्रकाशस्वरूप।

283. अमृतांशूद्भवः- समुद्र मन्थन करते समय चन्द्रमा को उत्पन्न करने वाले, 284. भानुः- भासने वाले, 285. शशबिन्दुः- खरगोश के समान चिह्न वाले चन्द्रस्वरूप, 286. सुरेश्वरः- देवताओं के ईश्वर, 287. औषधम्- संसार रोग को मिटाने के लिये औषधरूप, 288. जगतः सेतुः- संसार-सागर को पार कराने के लिये सेतुरूप, 289. सत्यधर्मपराक्रमः- सत्यस्वरूप धर्म और पराक्रम वाले, 290. भूतभव्यभवन्नाथः- भूत, भविष्य और वर्तमान के स्वामी, 291. पवनः- वायुरूप, 292. पावनः- जगत को पवित्र करने वाले, 293. अनलः- अग्नि स्वरूप, 294. कामहा- अपने भक्तजनों के सकाम भाव को नष्ट करने वाले, 295. कामकृत- भक्तों की कामनाओं को पूर्ण करने वाले, 296. कान्तः- कमनीयरूप, 297. कामः- (क) ब्रह्मा, (अ) विष्णु, (म) महादेव- इस प्रकार त्रिदेवरूप, 298. कामप्रदः- भक्तों को उनकी कामना की हुई वस्तुएँ प्रदान करने वाले, 299. प्रभुः- सर्वसामर्थ्यवान, 300. युगादिकृत्- युगादि का आरम्भ करने वाले, 301. युगावर्तः- चारों युगों को चक्र के समान घुमाने वाले, 302. नैकमायः- अनेक मायाओं को धारण करने वाले, 303. महाशनः- कल्प के अन्त में सबको ग्रसन करने वाले, 304. अदृश्यः- समस्त ज्ञानेन्द्रियों के अविषय, 305. अव्यक्तरूपः- निराकार स्वरूप वाले, 306. सहस्रजित- युद्ध में हज़ारों देवशत्रुओं को जीतने वाले, 307. अनन्तजित्- युद्ध और क्रीड़ा आदि में सर्वत्र समस्त भूतों को जीतने वाले।

308. इष्टः- परमानन्दरूप होने से सर्वप्रिय, 309. अविशिष्टः- सम्पूर्ण विशेषणों से रहित, 310. शिष्टेष्टः- शिष्ट पुरुषों के इष्टदेव, 311. शिखण्डी- मयूरपिच्छ को अपना शिरोभूषण बना लेने वाले, 312. नहुषः- भूतों को माया से बाँधने वाले, 313. वृषः- कामनाओं को पूर्ण करने वाले धर्मस्वरूप, 314. क्रोधहा- क्रोध का नाश करने वाले, 315. क्रोधकृत्कर्ता- क्रोध करने वाले दैत्यादि के विनाशक, 316. विश्वबाहुः- सब ओर बाहुओं वाले, 317. महीधरः- पृथ्वी को धारण करने वाले, 318. अच्युतः- छः भावविकारों से रहित, 319. प्रथितः- जगत की उत्पत्ति आदि कर्मों के कारण विख्यात, 320. प्राणः- हिरण्यगर्भरूप से प्रजा को जीवित रखने वाले, 321. प्राणदः- सबका भरण-पोषण करने वाले, 322. वासवानुजः- वामनावतार में इन्द्र के अनुजरूप में उत्पन्न होने वाले, 323. अपां निधिः- जल को एकत्र रखने वाले, समुद्ररूप, 324. अधिष्ठानम- उपादान कारणरूप से सब भूतों के आश्रय, 325. अप्रमत्तः-कभी प्रमाद न करने वाले, 326. प्रतिष्ठितः- अपनी महिमा में स्थित।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः