एकोनपन्चाशदधिकशततम (149) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासनपर: एकोनपन्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 35-41 का हिन्दी अनुवाद
218. अग्रणीः- मुमुक्षुओं को उत्तम पद पर ले जाने वाले, 219. ग्रामणीः- भूत समुदाय के नेता, 220. श्रीमान्- सबसे बढ़ी-चढ़ी कान्ति वाले, 221. न्यायः- प्रमाणों के आश्रयभूत तर्क की मूर्ति, 222. नेता- जगत रूप यन्त्र को चलाने वाले, 223. समीरणः- श्वासरूप से प्राणियों से चेष्टा कराने वाले, 224. सहस्रमूर्धा- हज़ार सिर वाले, 225. विश्वात्मा- विश्व के आत्मा, 226. सहस्राक्षः- हज़ार आँखों वाले, 227. सहस्रपात्- हज़ार पैरों वाले, 228. आवर्तनः- संसार चक्र को चलाने के स्वभाव वाले, 229. निवृत्तात्मा- संसारबन्धन से नित्य मुक्तस्वरूप, 230. संवृतः- अपनी योगमाया से ढके हुए, 231. सम्प्रदमर्दनः- अपने रुद्र आदि स्वरूप से सबका मर्दन करने वाले, 232. अहःसंवर्तकः- सूर्यरूप से सम्यक्तया दिन के प्रवर्तक, 233. वन्हिः- हवि को वहन करने वाले अग्नि देव, 234. अनिलः- प्राणरूप से वायुस्वरूप, 235. धरणीधरः- वराह और शेषरूप से पृथ्वी को धारण करने वाले, 236. सुप्रसादः- शिशुपालादि अपराधियों पर भी कृपा करने वाले, 237. प्रसन्नात्मा- प्रसन्न स्वभाव वाले, 238. विश्वधृक्- जगत को धारण करने वाले, 239. विश्वभुक्- विश्व का पालन करने वाले, 240. विभुः- सर्वव्यापी, 241. सत्कर्ता- भक्तों का सत्कार करने वाले, 242. सत्कृतः- पूजितों से भी पूजित, 243. साधुः- भक्तों के कार्य साधने वाले, 244. जन्हुः- संहार के समय जीवों का लय करने वाले, 245. नारायणः- जल में शयन करने वाले, 246. नरः- भक्तों को परमधाम में ले जाने वाले। 247. असंख्येयः- जिसके नाम और गुणों की संख्या न की जा सके, 248. अप्रमेयात्मा- किसी से भी मापे न जा सकने वाले, 249. विशिष्टः- सबसे उत्कृष्ट, 250. शिष्टकृत्- श्रेष्ठ बनाने वाले, 251. शुचिः- परम शुद्ध, 252. सिद्धार्थः- इच्छित अर्थ को सर्वथा सिद्ध कर चुकने वाले, 253. सिद्धसंकल्पः- सत्य-संकल्प वाले, 254. सिद्धिदः- कर्म करने वालों को उनके अधिकार के अनुसार फल देने वाले, 255. सिद्धिसाधनः- सिद्धिरूप क्रिया के साधक, 256. वृषाही- द्वादशाहादि यज्ञों को अपने में स्थित रखने वाले, 257. वृषभः- भक्तों के लिये इच्छित वस्तुओं की वर्षा करने वाले, 258. विष्णुः- शुद्ध सत्त्वमूर्ति, 259. वृषपर्वा- परमधाम में आरूढ़ होने की इच्छा वालों के लिये धर्मरूप सीढ़ियों वाले, 260. वृषोदरः- अपने उदर में धर्म को धारण करने वाले, 261. वर्धनः- भक्तों को बढ़ाने वाले, 262. वर्धमानः- संसाररूप से बढ़ने वाले, 263. विविक्तः- संसार से पृथक् रहने वाले, 264. श्रुतिसागरः- वेदरूप जल के समुद्र। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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