एकोनपन्चाशदधिकशततम (149) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासनपर: एकोनपन्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 29-34 का हिन्दी अनुवाद
163. वेद्यः- कल्याण की इच्छा वालों के द्वारा जानने योग्य, 164. वैद्यः- सब विद्याओं के जानने वाले, 165. सदायोगी- सदा योग में स्थित रहने वाले, 166. वीरहा- धर्म की रक्षा के लिये असुर योद्धाओं को मार डालने वाले, 167. माधवः- विद्या के स्वामी, 168. मधुः- अमृत की तरह सबको प्रसन्न करने वाले, 169. अतीन्द्रियः- इन्द्रियों से सर्वथा अतीत, 170. महामायः- मायावियों पर भी माया डालने वाले, महान मायावी, 171. महोत्साहः- जगत की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय के लिये तत्पर रहने वाले परम उत्साही, 172. महाबलः- महान बलशाली, 173. महाबुद्धिः- महान बुद्धिमान, 174. महावीर्यः- महान पराक्रमी, 175. महाशक्तिः- महान सामर्थ्यवान, 176. महाद्युतिः- महान कान्तिमान, 177. अनिर्देश्यवपुः- वर्णन करने में न आने योग्य स्वरूप, 178. श्रीमान- ऐश्वर्यवान, 179. अमेयात्मा- जिसका अनुमान न किया जा सके ऐसे आत्मावाले, 180. महाद्रिधृक्- अमृतमन्थन और गोरक्षण के समय मन्दराचल और गोवर्धन नामक महान पर्वतों को धारण करने वाले। 181. महेष्वासः- महान् धनुष वाले, 182. महीभर्ता- पृथ्वी को धारण करने वाले, 183. श्रीनिवासः- अपने वक्षःस्थल में श्री को निवास देने वाले, 184. सतां गतिः- सत्पुरुषों के परम आश्रय, 185. अनिरुद्धः- किसी के भी द्वारा न रुकने वाले, 186. सुरानन्दः- देवताओं को आनन्दित करने वाले, 187. गोविन्दः- वेदवाणी के द्वारा अपने को प्राप्त करा देने वाले, 188. गोविदां पतिः- वेदवाणी को जानने वालों के स्वामी, 189. मरीचिः- तेजस्वियों के भी परम तेजरूप, 190. दमनः- प्रमाद करने वाली प्रजा को यम आदि के रूप से दमन करने वाले, 191. हंसः- पितामह ब्रह्मा को वेद का ज्ञान कराने के लिये हंसरूप धारण करने वाले, 192. सुपर्णः- सुन्दर पंख वाले गरुड़स्वरूप, 193. भुजगोत्तमः- सर्पों में श्रेष्ठ शेषनागरूप, 194. हिरण्यनाभाः- सुवर्ण के समान रमणीय नाभि वाले, 195. सुतपाः- बदरिकाश्रम में नर-नारायणरूप से सुन्दर तप करने वाले, 196. पद्मनाभः- कमल के समान सुन्दर नाभि वाले, 197. प्रजापतिः- सम्पूर्ण प्रजाओं के पालनकर्ता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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