पंचचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: पंचचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-40 का हिन्दी अनुवाद
विद्वान पुरुष गुरु के लिये अपने धन और शरीर को समर्पण कर दे। धन के लिये अथवा मोहवश उनके साथ विवाद न करे। जो गुरुजनों से अभिशप्त है, उसके किये हुए ब्रह्मचर्य, अहिंसा और नाना प्रकार के दान- ये सब व्यर्थ हो जाते हैं। जो लोग उपाध्याय, पिता और माता के साथ मन, वाणी एवं क्रिया द्वारा द्रोह करते हैं, उन्हें भ्रूणहत्या से भी बड़ा पाप लगता है। उनसे बढ़कर पापाचारी इस संसार में दूसरा कोई नहीं है। उमा ने कहा- प्रभो! अब आप मुझे उपवास की विधि बताइये। श्रीमहेश्वर बोले- प्रिये! शारीरिक दोष की शान्ति के लिये और इन्द्रियों को सुखाकर वश में करने के लिये मनुष्य एक समय भोजन अथवा दोनों समय उपवासपूर्वक व्रत धारण करते हैं और आहार क्षीण कर देने के कारण महान धर्म का फल पाते हैं। जो अपने लिये बहुत-से प्राणियों को बन्धन में नहीं डालता और न उनका वध ही करता है, वह जीवन भर धन्य माना जाता है। अतः यह सिद्ध होता है कि स्वयं आहार को घटा देने से मनुष्य अवश्य पुण्य का भागी होता है। इसलिये गृहस्थों को यथाशक्ति आहार-संयम करना चाहिये, यह शास्त्रों का निश्चित आदेश है। उपवास से जब शरीर को अधिक पीड़ा होने लगे, तब उस आपत्ति काल में ब्राह्मणों से आज्ञा लेकर यदि मनुष्य दूध अथवा जल ग्रहण कर ले तो इससे उसका व्रत भंग नहीं होता। उमा ने पूछा- देव! विज्ञ पुरुष को ब्रह्मचर्य की रक्षा कैसे करनी चाहिये? श्रीमहेश्वर ने कहा- देवि! यह विषय मैं तुम्हें बताता हूँ, एकाग्रचित्त होकर सुनो। ब्रह्मचर्य सर्वोत्तम शौचाचार है, ब्रह्मचर्य उत्कृष्ट तपस्या है तथा केवल ब्रह्मचर्य से भी परम पद की प्राप्ति होती है। संकल्प से, दृष्टि से, न्यायोचित वचन से, स्पर्श से और संयोग से- इन पाँच प्रकारों से व्रत की रक्षा होती है। व्रतपूर्वक धारण किया हुआ निष्कलंक ब्रह्मचर्य सदा सुरक्षित रहे, ऐसा नैष्ठिक ब्रह्मचारियों के लिये विधान है। वही ब्रह्मचर्य गृहस्थों के लिये भी अभीष्ट है, इसमें काल ही कारण है। जन्म-नक्षत्र का योग आने पर पवित्र स्थानों में पर्वों के दिन तथा देवता सम्बन्धी धर्म-कृत्यों में गृहस्थों को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन अवश्य करना चाहिये। जो सदा एकपत्नीव्रती रहता है, वह ब्रह्मचर्य व्रत के पालन का फल पाता है। ब्रह्मचारियों को पवित्रता, आयु तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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