पंचचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: पंचचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-20 का हिन्दी अनुवाद
उमा ने पूछा- भगवन! कुछ मनुष्य संतानहीन होने के कारण अत्यन्त दुःखी रहते हैं। वे जहाँ-तहाँ से प्रयत्न करने पर भी संतान लाभ से वंचित ही रह जाते हैं। किस कर्मविपाक से ऐसा होता है? यह मुझे बताने की कृपा करे। श्रीमहेश्वर ने कहा- देवि! जो मनुष्य पहले समस्त प्राणियों के प्रति निर्दयता का बर्ताव करते हैं, मृगों और पक्षियों के भी बच्चों को मारकर खा जाते हैं, गुरु से द्वेष रखते, दूसरों के पुत्रों के दोष देखते हैं, पार्वण आदि श्राद्धों के द्वारा शास्त्रोक्त रीति से पितरों की पूजा नहीं करते, शोभने! ऐसे आचरण वाले जीव फिर जन्म लेने पर दीर्घकाल के पश्चात मानव योनि को पाकर संतानहीन तथा पुत्रशोक से संतप्त होते हैं, इसमें विचार करने की आवश्यकता नहीं है। उमा ने कहा- भगवन! मनुष्यों में कुछ लोग अत्यन्त दुःखी दिखायी देते हैं। उनके निवास स्थान में उद्वेग का वातावरण छाया रहता है। वे उद्विग्न रहकर संयमपूर्वक व्रत का पालन करते हैं। नित्य शोकमग्न तथा दुर्गतिग्रस्त रहते हैं। किस कर्मविपाक से ऐसा होता है? यह मुझे बताइये। श्रीमहेश्वर ने कहा- देवि! जो मनुष्य पहले प्रतिदिन घूस लेते हैं, दूसरों को डराते और उनके मन में विकार उत्पन्न कर देते हैं, अपने इच्छानुसार दरिद्रों का ऋण बढ़ाते हैं, जो कुत्तों से खेलते और वन में मृगों को त्रास पहुँचाते हैं, जहाँ-तहाँ प्राणियों की हिंसा करते हैं, जिनके घरों में पले कुत्ते व्यर्थ ही लोगों को डराते रहते हैं, प्रिये! ऐसे आचरण वाले मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होकर यमदण्ड से पीड़ित हो चिरकाल तक नरक में पड़े रहते हैं। फिर किसी प्रकार मनुष्य का जन्म पाकर अधिक दुःख से भरे हुए सैकड़ों बाधाओं से व्याप्त कुत्सिक देश में उत्पन्न हो वहाँ दुःखी, शोकमग्न और सब ओर से उद्विग्न बने रहते हैं। उमा ने पूछा- भगवन! भगदेवता के नेत्र को नष्ट करने वाले महादेव! मनुष्यों में कुछ लोग कायर, नपुंसक और हिजड़े देखे जाते हैं, जो इस भूतल पर स्वयं तो नीच हैं ही, नीच कर्मों में तत्पर रहते और नीचों का ही साथ करते हैं। उनके नपुंसक होने में कौन-सा कर्मविपाक कारण होता है? यह मुझे बताइये। श्रीमहेश्वर ने कहा- कल्याणि! मैं वह कारण तुम्हें बताता हूँ, सुनो। जो मनुष्य पहले भयंकर कर्म में तत्पर होकर पशु के पुरुषत्व का नाश करने अर्थात पशुओं को बधिया करने के कार्य द्वारा जीवननिर्वाह करते और उसी में सुख मानते हैं, प्रिये! ऐसे आचरण वाले मनुष्य मृत्यु को पाकर यमदण्ड से दण्डित हो चिरकाल तक नरक में निवास करते हैं। यदि मनुष्य जन्म धारण करते हैं तो वैसे ही कायर, नपुंसक और हिजडे़ होते हैं। देवि! जैसे पुरुषों को कर्मजनित फल प्राप्त होता है, उसी प्रकार स्त्रियों को भी अपने-अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। यह विषय मैंने तुम्हें बता दिया। अब और क्या सुनना चाहाती हो? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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