चतुश्चत्वारिंशदधिकशततम (144) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुश्चत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 56-60 का हिन्दी अनुवाद
देवि! ऐसा श्रेष्ठ पुरुष देवत्व को प्राप्त होता है और देवलोक में प्रसन्नतापूर्वक स्वतः उपलब्ध हुए सुखद भोगों का अनुभव करता है। अथवा यदि कदाचित् वह मनुष्य लोक में जन्म लेता है तो वह मनुष्य दीर्घायु और सुखी होता है। यह सत्कर्म का अनुष्ठान करने वाले सदाचारी एवं दीर्घ जीवी मनुष्यों का लक्षण है। स्वयं ब्रह्मा जी ने इस मार्ग का उपदेश किया है। समस्त प्राणियों की हिंसा का परित्याग करने से ही इसकी उपलब्धि होती है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में उमा महेश्वर संवाद विषयक एक सौ चालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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