एकचत्वारिंशदधिकशततम (141) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: एकचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-6 का हिन्दी अनुवाद
उमा ने कहा- भगवन! मेरे मन में अभी संशय रह गया है। अतः उसकी व्याख्या करके मुझे समझाइये। चारों वर्णों का जो धर्म है, उसका पूर्णरूप से प्रतिपादन कीजिये। श्रीमहेश्वर ने कहा- धर्म का रहस्य सुनना, वेदोक्त व्रत का पालन करना, होम और गुरुसेवा करना- यह बह्मचर्य आश्रम का धर्म है। ब्रह्मचारी के लिये भैक्षचर्या (गाँवों में से भिक्षा माँगकर लाना और गुरु को समर्पित करना) परम धर्म है। नित्य यज्ञोपवीत धारण किये रहना, प्रतिदिन वेद का स्वाध्याय करना और ब्रह्मचर्याश्रम के नियमों के पालन में लगे रहना, ब्रह्मचारी का प्रधान कर्म है। ब्रह्मचर्य की अवधि समाप्त होने पर द्विज अपने गुरु की आज्ञा लेकर समावर्तन करे और घर आकर अनुरूप स्त्री से विधिपूर्वक विवाह करे। ब्राह्मण को शूद्र का अन्न नहीं खाना चाहिये, यह उसका धर्म है। सन्मार्ग का सेवन, नित्य उपवास-व्रत और ब्रह्मचर्य का पालन भी धर्म है। गृहस्थ को अग्निस्थापनपूर्वक अग्निहोत्र करने वाला, स्वाध्यायशील, होमपरायण, जितेन्द्रिय, विघसाशी, मिताहारी, सत्यवादी और पवित्र होना चाहिये। अतिथि-सत्कार करना और गार्हपत्य आदि त्रिविध अग्नियों की रक्षा करना उसके लिये धर्म है। वह नाना प्रकार की इष्टियों और पशुरक्षा कर्म का भी विधिपूर्वक आचरण करे। यज्ञ करना तथा किसी भी जीव की हिंसा न करना उसके लिये परम धर्म है। घर में पहले भोजन न करना तथा विघसाशी होना, कुटुम्ब के लोगों के भोजन कराने के बाद ही अवशिष्ट अन्न का भोजन करना- यह भी उसका धर्म है। जब कुटुम्बीजन भोजन कर लें, उसके पश्चात स्वयं भोजन करना, यह गृहस्थ ब्राह्मण का विशेषतः श्रोत्रिय का मुख्य धर्म बताया गया है। पति और पत्नी का स्वभाव एक सा होना चाहिये। यह गृहस्थ का धर्म है। घर के देवताओं की प्रतिदिन पुष्पों द्वारा पूजा करना, उन्हें अन्न की बलि समर्पित करना, रोज-रोज घर लीपना और प्रतिदिन व्रत रखना भी गृहस्थ का धर्म है। झाड़-बुहार, लीप-पोतकर स्वच्छ किये हुए घर में घृतयुक्त आहुति करके उसका धुआँ फैलाना चाहिये। यह ब्राह्मणों का गार्हस्थ्य धर्म बतलाया, जो संसार की रक्षा करने वाला है। अच्छे ब्राह्मणों के यहाँ सदा ही इस धर्म का पालन किया जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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