एकोनचत्वारिंशदधिकशततम (139) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: एकोनचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 20-37 का हिन्दी अनुवाद
वक्ताओं में श्रेष्ठ नारायणस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण ने उन ऋषियों को विस्मयविमुग्ध हुआ देख विनय और स्नेह से युक्त मधुर वाणी में पूछा- ‘महर्षियों! ऋषि समुदाय तो आसक्ति और ममता से रहित है। सबको शास्त्रों का ज्ञान है, फिर भी आप लोगों को आश्चर्य क्यों हो रहा है? तपोधन ऋषियो! आप सब लोग सबके द्वारा प्रशंसित हैं, अतः मेरे इस संशय को निश्चित एवं यथार्थ रूप से बताने की कृपा करें।' ऋषियों ने कहा- भगवन! आप ही संसार को बनाते और आप ही पुनः उसका संहार करते हैं। आप ही सर्दी, आप ही गर्मी और आप ही वर्षा करते हैं। इस पृथ्वी पर जो भी चराचर प्राणी हैं, उनके पिता-माता, प्रभु और उत्पत्ति स्थान भी आप ही हैं। मधुसूदन! आपके मुख से अग्नि का प्रादुर्भाव हमारे लिये इस प्रकार विस्मयजनक हुआ है। हम संशय में पड़ गये हैं। कल्याणमय श्रीकृष्ण! आप ही इसका कारण बताकर हमारे संदेह और विस्मय का निवारण कर सकते हैं। शत्रुसूदन हरे! उसे सुनकर हम भी निर्भय हो जायँगे और हमने जो आश्चर्य की बात देखी या सुनी है, उसका हम आपके सामने वर्णन करेंगे। श्रीकृष्ण बोले- मुनिवरो! मेरे मुख से यह मेरा वैष्णव तेज प्रकट हुआ था, जिसने प्रलय काल की अग्नि के समान रूप धारण करके इस पर्वत को दग्ध कर डाला था। उसी तेज से आप-जैसे तपस्या के धनी, देवोपम शक्तिशाली, क्रोधविजयी और जितेन्द्रिय ऋषि भी पीड़ित और व्यथित हो गये थे। मैं व्रतचर्या में लगा हुआ था, तपस्वीजनों के उस व्रत का सेवन करने से मेरा तेज ही अग्नि रूप में प्रकट हुआ था। अतः आप लोग उससे व्यथित न हों। मैं तपस्या द्वारा अपने ही समान वीर्यवान पुत्र पाने की इच्छा से व्रत करने के लिये इस मंगलकारी पर्वत पर आया हूँ। मेरे शरीर में स्थित प्राण ही अग्नि के रूप में बाहर निकलकर सबको वर देने वाले सर्वलोक पितामह ब्रह्मा जी का दर्शन करने के लिये उनके लोक में गया था। मुनिवरो! उन ब्रह्मा जी ने मेरे प्राण को यह संदेश देकर भेजा है कि साक्षात भगवान शंकर अपने तेज के आधे भाग से आपके पुत्र होंगे। वही यह अग्निरूपी प्राण मेरे पास लौटकर आया है और निकट पहुँचने पर शिष्य की भाँति परिचर्या करने के लिये उसने मेरे चरणों में प्रणाम किया है। इसके बाद शान्त होकर वह अपनी पूर्वावस्था को प्राप्त हो गया। तपोधनों! यह मैंने आप लोगों के निकट बुद्धिमान भगवान विष्णु का गुप्त रहस्य संक्षेप से बताया है। आप लोगों को भय नहीं मानना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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